(इस वर्ष आ रही ४५ वीं वर्षगाँठ के लिए
जीवन-संगिनी प्रिय नीरा जी को सप्रेम समर्पित)
------
हो विश्वव्यापी सूर्य
या हों व्योम की तारिकाएँ
गहन आत्मीयता की उष्मा प्रज्ज्वलित
तुम्हारा स्वर्णिम सुगंधित साथ
काल्पनिक शून्य में भी हो मानो
तुम यहीं-कहीं आस-पास ...
सम्मोहित
शनै:-शनै: सहला देती हूँ तुम्हारा हाथ
संकुलित कटे-छंटे शब्द हमारे
मन्द्र मौन में रीत जाते
और कुछ और तैरते, स्वछन्द
बस घूमते आस-पास
सैलानी बुलबुलों की तरह
उड़े, उड़े जा रहे
हमारे निज से भी बड़े
आकाशीय, निसीम अखण्ड निजि शून्य में
असीम सियाह गुहाओं में तुम्हारी
जानती हूँ, है कहीं उर-विदारक शोर
इस पर भी निज कष्टों के कण्ठ मरोड़
बारिश के बाद बटोर लाते हो हर बार
सातों इन्द्रधनुषी रंगों की आभाएँ
नि:संदेह रंग-रंग देते हो रोम-रोम तुम मेरा
स्नेह-दृष्टि और अनुकंपा से प्रिय तुम कैसे
मेरी चेतना की आँखों को जगमगा देते हो
और जब नहीं होते हो पास मेरे
मैं अपनी अनुभवात्मक
आंतरिक मुडेरों के प्रसारों पर
दीप-पर्व या कोई त्योहार चाहे हो न हो
छलकती कृतज्ञता के पावन दीप जलाती
मैं आत्मा के फूलों से आत्मा की तुम्हारी
श्रध्दानत, आरती उतारते नहीं थकती
हो जाती हूँ तुम्हारे "पूर्ण" से मैं "सम्पूर्ण"
मेरे माथे पर तुम्हारे स्नेह का टीका लगाए
हर सन्ध्याकाल आरती-आलाप-वेला में
एक आस लिए खड़ी रहती हूँ प्रतीक्षार्थ
महामहिम मधुर एकान्त में मैं
सुनने तुम्हारी ध्वनिगुंजित पदचाप
भीतर सारे दरवाज़े खुल-खुल जाते हैं अकस्मात
रमणीयतम भावनाओं के गुन्थन में
बाहें फैलाए, तुम्हारे मुग्ध आलिंगन के लिए
--------
--- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
//प्रेम और जज़्बात में डूबी सुंदर रचना//
मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय तस्दीक जी।
//बेहतरीन भावों की चंपा , चमेली , रातरानी , गुलाब और मोगरा महक रहा है//
आपसे मिले इन फूलों की सुगन्ध मेरे साथ है और यह मुझको और अच्छा लिखनी की प्रेरणा देती रहेगी।
आपका हृदयतल से आभार, आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी।
//हृदय के हिम शिखर से अंतर्मन की निर्मल गंगा शाश्वत प्रेम की वादियों को छूती यूँ बही कि मेरा पथिक मन अपने प्रेम पंथ को संवारने लगा। भाव प्रतिमा का ऐसा शब्द शृंगार कि मूक अभिव्यक्ति स्मृति धरा पर नृत्य करने को विवश हो जाए। सृष्टि के रोम रोम में व्याप्त आदि को अंत तक जीने के भाव को जीवंत करती इस कल कल करती अमर काव्य सरिता की प्रस्तुति//
वाह, आदरणीय सुशील जी, आपकी प्रतिक्रिया के काव्य-भाव ! आपने तो एक और सुन्दर कविता ही लिख दी।
इस उदार सराहना के लिए हृदयतल से आभार, आदरणीय सुशील जी।
//मैं अभिभूत हो जाता हूँ जब स्वकीया और परकीया के प्रति आपके गीतों में एक सी निष्ठा देखता हूँ //
आपने इस रचना को केवल पढ़ा ही नहीं, इसके मर्म को जिस प्रकार पास से अनुभव किया है, यही मेरे लेखन की प्रेरणा है।
हृदयतल से आपका आभार, आदरणीय भाई गोपाल नारायन जी।
//वाहह! भाव,कथ्य,शिल्प,हर दृष्टि से लाजवाब रचना।//
रचना की सराहाना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय गजेन्द्र जी।
आदरणीय विजय निकोर जी, सादर प्रणाम ... हृदय के हिम शिखर से अंतर्मन की निर्मल गंगा शाश्वत प्रेम की वादियों को छूती यूँ बही कि मेरा पथिक मन अपने प्रेम पंथ को संवारने लगा। भाव प्रतिमा का ऐसा शब्द शृंगार कि मूक अभिव्यक्ति स्मृति धरा पर नृत्य करने को विवश हो जाए। सृष्टि के रोम रोम में व्याप्त आदि को अंत तक जीने के भाव को जीवंत करती इस कल कल करती अमर काव्य सरिता की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई और आपको आपकी ये ४५वीं वैवाहिक वर्षगाँठ मुबारक हो। जीवन संगिनी के लिए आपकी ये प्रेम सरिता यूँ ही बहती रहे। हार्दिक बधाई सर।
आदरणीय निकोर जी , आपका सदेश मिला . मैं जरूर अन्य व्यस्त्तताओं के कारण ओ बी ओ पर अधिक सक्रिय नहीं रह पाता . इसका अफ़सोस मुझे भी है . पैतालीस वर्ष के बाद चाहत के ऐसी अनुपम जिजीविषा जो आपके गीत में अभिव्यक्त हुयी वह आपके निर्मल ह्रदय की सच्ची ऊर्जा है . मैं अभिभूत हो जाता हूँ जब स्वकीया और परकीया के प्रति आपके गीतों में एक सी निष्ठा देखता हूँ . आपको नमन आपकी भावधारा को नमन और आपकी लेखनी को नमन . सादर मेरे अग्रज निकोर जी
/ वाह्ह्ह इतनी भावपूर्ण रचना जिसकी रवानी में एक पाठक का मन बह जाए वैसा ही प्रभाव मेरे हृदय में हुआ इसको पढ़कर //
आपने इतना मान दे कर मेरा मनोबल बहुत बढ़ाया है, आदरणीया बहन राजेश जी... हृदयतल से आपका आभार।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online