For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -चहरा छुपा रखा है’ सनम ने नकाब में- कालीपद 'प्रसाद'

काफिया : आब ; रदीफ़ : में

बहर : २२१  २१२१  १२२१  २१२

चहरा छुपा रखा है’ सनम ने नकाब में

मुहँ बंद किन्तु भौंहे’ चड़ी हैं इताब में |

इंसान जो अज़ीम है’ बेदाग़ है यहाँ  

है आग किन्तु दाग नहीं आफताब में |

जाना नहीं है को’ई भी सच और झूठ को

इंसान जी रहे हैं यहाँ’ पर सराब में  |

इंसां में’ कर्म दोष है’, जीवात्मा’ में नहीं

है दाग चाँद में, नहीं’ वो ज्योति ताब में |

मदहोश जिस्म और नशीले है’ नैन भी

मय से अधिक नशा है’ तुम्हारे शबाब में |

इक जाम जो पिलाया’ मुझे तुमने’ आँख से

वो अम्न का नशा तो’ नही इस शराब में |

जो एक बार तू ने’ पिलाया सुरा मुझे

कटता तमाम वक्त ते’रे इज़्तिराब में |

क्या हुस्न का बयान करूँ आपके सनम

ऐसा है जो कि आग लगाता है आब में |

मौलिक एवं अप्रकाशित

ज्योतिताब =चाँदनी, उष्मा  

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 754

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on January 12, 2018 at 10:39am

'ज्योति ताब' शब्द पहली बार पढ़ा है ।

वैसे आठ अशआर हैं,एक की क़ुर्बानी भी दी जा सकती है ।

Comment by Kalipad Prasad Mandal on January 12, 2018 at 9:39am

महताब के बदले " ज्योति ताब या रश्मि ताब  ' हो सकते है , मैंने ज्योति ताब कर दिया |देख लीजिये,आदाब 

Comment by Samar kabeer on January 11, 2018 at 5:24pm

'ने' के बाद 'निक़ाब' लिखने से ऐब-ए-तनाफ़ुर नहीं होता,ऐब-ए-तनाफ़ुर पर "ग़ज़ल की बातें" समूह में आलेख मौजूद है,देखियेगा ।

'है दाग़ चाँद में,नहीं वो माहताब में'

इस मिसरे में चाँद और माहताब ऐक हैं,आपने ध्यान नहीं दिया,,इस मिसरे को यूँ करें तो आपका कहा हुआ भाव किसी हद तक आ जायेगा:-

'क़ब चाँदनी में दाग़ है जो माहताब में'

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 11, 2018 at 8:33am

हार्दिक बधाई।

Comment by Kalipad Prasad Mandal on January 10, 2018 at 10:11am

आदरणीया ब्रजेश कुमार जी , आदाब ,ग़ज़ल पर शिरकत करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया |

Comment by Kalipad Prasad Mandal on January 10, 2018 at 10:09am

आदरणीय समर कबीर साहिब आदाब , आपने हर शेर को थोड़ा थोड़ा परिवर्तन कर उन्हें लाजवाब बना जिया |बहुत बहुत शुक्रिया |पहला शेर में मैंने 'सनम ने 'लिखा था बाद में वो किया क्योकि उसके बाद नकाब आ रहा था| ने,न ,इसका अर्थ यही हुआ मुझे ऐब -ऐ -तानाफुर की समझ सही नहीं है | या इसको अभी मानते नहीं है | कृपया प्रकाश डाले |

माहताब मैं चांदनी के लिए उपयोग किया है गलती से आफ़ताब लिखा गया |

बाकी मैं आपके सुझाव के अनुसार परिवर्तन कर लेता हूँ | तहे दिल से शुक्रिया |आदाब 

Comment by Samar kabeer on January 9, 2018 at 11:04pm

जनाब कालीपद प्रसाद मण्डल जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

मतला यूँ करें :-

'चहरा छुपा रखा है सनम ने निक़ाब में

मुँह बन्द किन्तु भौहें चढ़ी हैं इताब में'

दूसरा शैर यूँ कर लें :-

"इंसान जो अज़ीम है, बेदाग़ है यहाँ

है आग किन्तु दाग़ नहीं आफ़ताब में'

तीसरा शैर यूँ कर लें :-

'जाना नहीं है कोई भी सच और झूट को

इंसान जी रहे हैं यहाँ पर सराब में'

4थे शैर में ' चाँद'और 'माहताब' एक ही हैं,यानी चाँद को माहताब भी कहते हैं।

पांचवें शैर को यूँ कर लें :-

'मदहोश जिस्म और नशीले हैं नैन भी

मय से अधिक नशा है तुम्हारे शबाब में'

छटा शैर यूँ कर लें :-

'इक जाम जो पिलाया मुझे तुमने आँख से

वो अम्न का नशा तो नहीं इस शराब में'

आख़री शैर यूँ कर लें :-

'क्या हुस्न का बयान करूँ आपके सनम

ऐसा है जो कि आग लगाता है आब में'

"आफ़ताब" का अर्थ सूरज है चाँदनी नहीं ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 9, 2018 at 9:42pm

अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय..बाकी गुणीजन अपनी राय देंगे..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service