For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल(याद आती हैं जब)
212 212 212 212

याद आतीं हैं जब आपकी शोखियाँ,
और भी तब हसीं होतीं तन्हाइयाँ।

आपसे बढ़ गईं इतनी नज़दीकियाँ,
दिल के लगने लगीं पास अब दूरियाँ।

डालते गर न दरिया में कर नेकियाँ,
हारते हम न यूँ आपसे बाज़ियाँ।

गर न हासिल वफ़ा का सिला कुछ हुआ,
उनकी शायद रही कुछ हों मज़बूरियाँ।

मिलता हमको चराग-ए-मुहब्बत अगर,
राह में स्याह आतीं न दुश्वारियाँ।

हुस्नवालों से दामन बचाना ए दिल,
मात दानिश को दें उनकी नादानियाँ।

आग मज़हब की जो भी लगातें 'नमन',
इसमें अपनी ही वे सेकतें रोटियाँ।

पुछल्ला

आठ पूरे किए साल खुशहाली के,

ओ बी ओ यूँ ही छूएगा ऊँचाइयाँ।


दानिश=अक्ल, बुद्धि

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 515

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harash Mahajan on April 7, 2018 at 8:48am

आदरनीय बासुदेव जी,बहुत ही सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई ।

सादर !

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 5, 2018 at 5:05pm

आ0 नीलेश जी बहुत आभार। 

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 5, 2018 at 5:03pm

आ0 लक्ष्मण धामी जी बहुत आभार।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 5, 2018 at 7:21am

आ. बासुदेव जी,
ग़ज़ल का उम्दा प्रयास हुआ   है .. बधाई 
जैसा समर सर ने कहा कि कई   जगह अनुस्वार ठीक नहीं लगे हैं जिस पर समय दीजिये 
सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 5, 2018 at 7:10am

आ. भाई बासुदेव जी, सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on April 4, 2018 at 8:01pm

मेरे कहे को मान देने के लिए धन्यवाद ।

Comment by Samar kabeer on April 4, 2018 at 7:57pm

मेरे कहे को मान देने के लिए धन्यवाद ।

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 4, 2018 at 6:39pm

आ0 समर साहिब ग़ज़ल में शिरकत के लिए आभार। ग़ज़ल में आपकी इस्लाह के अनुसार कुछ सुझाव कर दिए हैं।

Comment by Samar kabeer on April 3, 2018 at 11:11am

जनाब बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें

कुछ अशआर में शिल्प कमज़ोर हैं,कई जगह अनुस्वार लगना थे,जो नहीं लगे,देखियेगा ।

तीसरे शैर के ऊला में कुएं में नेकी डालने का ज़िक्र है, लेकिन मुहावरा तो नेकी कर दरया में डाल ,है ।

6ठे शैर के ऊला में 'हुश्नवालों' की जगह "हुस्न वालों" कर लें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई ,सुन्दर  , सार्थक  देश भक्ति  से पूर्ण सार छंद के लिए हार्दिक…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई "
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरनीय आजी भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
3 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
10 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
10 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
10 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
10 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service