For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ,(तेरे चहरे की जब भी अर्गवानी याद आएगी।)

ग़ज़ल ,(तेरे चहरे की जब भी अर्गवानी याद आएगी।)

1222 1222 1222 1222

तेरे चहरे की रंगत अर्गवानी याद आएगी,
हमें होली के रंगों की निशानी याद आएगी।

तुझे जब भी हमारी छेड़खानी याद आएगी
यकीनन यार होली की सुहानी याद आएगी।

मची है धूम होली की जरा खिड़की से झाँको तो,
इसे देखोगे तो अपनी जवानी याद आएगी।

जमीं रंगीं फ़ज़ा रंगीं तेरे आगे नहीं कुछ ये,
झलक इक बार दिखला दे पुरानी याद आएगी।

नहीं कम ब्लॉग में मस्ती मज़ा लेंगे जो होली का,
'नमन' मेरी सभी को शेर-ख्वानी याद आएगी।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 603

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harash Mahajan on March 4, 2018 at 1:21pm

होली के उपलक्ष्य में एक अच्छी पेशकश हुई है आदरणीय नमन जी ।

"तुझे जब भी हमारी छेड़खानी याद आएगी
यकीनन यार होली की सुहानी याद आएगी।".....बहुत ही खूब ।

बाकी आदरणीय समर  कबीर जी की इस्लाह सच में सौभाग्य ही है ।

Comment by Shyam Narain Verma on March 4, 2018 at 10:25am
बहूत उम्दा हार्दिक बधाई l सादर
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 3, 2018 at 11:17pm

हार्दिक बधाई ..

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on March 3, 2018 at 11:10am

आ0 तस्दीक़ साहिब होली की शुभ कामना के साथ आभार।

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on March 3, 2018 at 11:09am

आ0 समर साहब मेरे इस प्रयास पर ऐसी उस्तादाना इस्लाह सिर्फ आपसे और इसी मंच पर मिल सकती है। यह मेरा सौभाग्य है कि मैं मंच और आपसे जुड़ा हुआ हूँ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 3, 2018 at 8:46am

मुहतरम जनाब बासुदेव साहिब ,होली पर सुन्दर ग़ज़ल हुई है, होली के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।

Comment by Mohammed Arif on March 2, 2018 at 10:35pm

आदरणीय वासुदेव जी आदाब,

                          ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की बेशक़ीमती इस्लाह का तत्काल प्रभाव से संज्ञान लें । ग़ज़ल बहुत बेहतरीन बन जाएगी ।

                             रंग पर्व होली की शुभकानाएँ ।

Comment by Samar kabeer on March 2, 2018 at 9:55pm

जनाब बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी आदाब,होली पर ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

कुछ बातों की तरफ़ आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा ।

मतले के ऊला मिसरे में 'अर्ग़वानी' शब्द का इस्तेमाल सही नहीं है, 'अर्ग़वानी' का अर्थ होता है 'गहरा सुर्ख़(लाल)रंग' ,इस लिहाज़ से ऊला मिसरा यूँ करना उचित होगा :-

'तेरे चहरे की रंगत अर्ग़वानी याद आयेगी'

'तुम्हें भी जब हमारी छेड़ख़ानी याद आयेगी

यक़ीनन तुमको होली की कहानी याद आयेगी'

इस शैर के ऊला मिसरे में 'तुम्हें' और सानी मिसरे में 'तुमको' शब्द इसलिये मुनासिब नहीं कि इन की वजह से दोनों मिसरों में सम्बोधन है, जो उचित नहीं,अगर मुनासिब समझें तो इस शैर को यूँ कर लें :-

'तुझे जब भी हमारी छेड़ख़ानी याद आयेगी

यक़ीनन यार होली की सुहानी याद आयेगी'

4थे शैर के ऊला मिसरे में 'फ़िज़ा' को "फ़ज़ा" कर लें ।

'नमन' ग़ज़लों की सबको शे'रख़्वानी याद आयेगी'

ये मिसरा व्याकरण की दृष्टि से ग़लत है,ग़लत इसलिये कि 'शे'रख़्वानी' शब्द के साथ 'ग़ज़लों' कहना उचित नहीं होता,क्योंकि ज़ाहिर सी बात है कि शे'र ग़ज़ल के ही होते,'फिर 'शे'र ख़्वानी' कहलो या "ग़ज़ल ख़्वानी" एक ही बात है,इस  मक़्ते को यूँ कर सकते हैं :-

'नहीं कम ब्लॉग पर मस्ती,मज़ा लेंगे जो होली का

'मनन' जी की सभी को शे'र ख़्वानी याद आयेगी'

बाक़ी शुभ शुभ,आपको होली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 2, 2018 at 6:47pm

होली पर बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आद० बासुदेव जी बहुत बहुत मुबारक 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
8 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
21 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
yesterday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service