ग़ज़ल ,(तेरे चहरे की जब भी अर्गवानी याद आएगी।)
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तेरे चहरे की रंगत अर्गवानी याद आएगी,
हमें होली के रंगों की निशानी याद आएगी।
तुझे जब भी हमारी छेड़खानी याद आएगी
यकीनन यार होली की सुहानी याद आएगी।
मची है धूम होली की जरा खिड़की से झाँको तो,
इसे देखोगे तो अपनी जवानी याद आएगी।
जमीं रंगीं फ़ज़ा रंगीं तेरे आगे नहीं कुछ ये,
झलक इक बार दिखला दे पुरानी याद आएगी।
नहीं कम ब्लॉग में मस्ती मज़ा लेंगे जो होली का,
'नमन' मेरी सभी को शेर-ख्वानी याद आएगी।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
होली के उपलक्ष्य में एक अच्छी पेशकश हुई है आदरणीय नमन जी ।
"तुझे जब भी हमारी छेड़खानी याद आएगी
यकीनन यार होली की सुहानी याद आएगी।".....बहुत ही खूब ।
बाकी आदरणीय समर कबीर जी की इस्लाह सच में सौभाग्य ही है ।
हार्दिक बधाई ..
आ0 तस्दीक़ साहिब होली की शुभ कामना के साथ आभार।
आ0 समर साहब मेरे इस प्रयास पर ऐसी उस्तादाना इस्लाह सिर्फ आपसे और इसी मंच पर मिल सकती है। यह मेरा सौभाग्य है कि मैं मंच और आपसे जुड़ा हुआ हूँ।
मुहतरम जनाब बासुदेव साहिब ,होली पर सुन्दर ग़ज़ल हुई है, होली के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
आदरणीय वासुदेव जी आदाब,
ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की बेशक़ीमती इस्लाह का तत्काल प्रभाव से संज्ञान लें । ग़ज़ल बहुत बेहतरीन बन जाएगी ।
रंग पर्व होली की शुभकानाएँ ।
जनाब बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी आदाब,होली पर ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
कुछ बातों की तरफ़ आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा ।
मतले के ऊला मिसरे में 'अर्ग़वानी' शब्द का इस्तेमाल सही नहीं है, 'अर्ग़वानी' का अर्थ होता है 'गहरा सुर्ख़(लाल)रंग' ,इस लिहाज़ से ऊला मिसरा यूँ करना उचित होगा :-
'तेरे चहरे की रंगत अर्ग़वानी याद आयेगी'
'तुम्हें भी जब हमारी छेड़ख़ानी याद आयेगी
यक़ीनन तुमको होली की कहानी याद आयेगी'
इस शैर के ऊला मिसरे में 'तुम्हें' और सानी मिसरे में 'तुमको' शब्द इसलिये मुनासिब नहीं कि इन की वजह से दोनों मिसरों में सम्बोधन है, जो उचित नहीं,अगर मुनासिब समझें तो इस शैर को यूँ कर लें :-
'तुझे जब भी हमारी छेड़ख़ानी याद आयेगी
यक़ीनन यार होली की सुहानी याद आयेगी'
4थे शैर के ऊला मिसरे में 'फ़िज़ा' को "फ़ज़ा" कर लें ।
'नमन' ग़ज़लों की सबको शे'रख़्वानी याद आयेगी'
ये मिसरा व्याकरण की दृष्टि से ग़लत है,ग़लत इसलिये कि 'शे'रख़्वानी' शब्द के साथ 'ग़ज़लों' कहना उचित नहीं होता,क्योंकि ज़ाहिर सी बात है कि शे'र ग़ज़ल के ही होते,'फिर 'शे'र ख़्वानी' कहलो या "ग़ज़ल ख़्वानी" एक ही बात है,इस मक़्ते को यूँ कर सकते हैं :-
'नहीं कम ब्लॉग पर मस्ती,मज़ा लेंगे जो होली का
'मनन' जी की सभी को शे'र ख़्वानी याद आयेगी'
बाक़ी शुभ शुभ,आपको होली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ ।
होली पर बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आद० बासुदेव जी बहुत बहुत मुबारक
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