For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

22  22  22  22  22  22  22  2

एक ताज़ा ग़ज़ल

आदमी सोच के कुछ चलता है,दुनिया में हो जाता कुछ।
मानव की इच्छाएं कुछ है, अर मालिक का लेखा कुछ ।

अपने अपने दुख के साये मैं हम दोनों जिंदा है ,
तू क्या समझे,मैं क्या समझूं, तेरा कुछ है, मेरा कुछ ।

दुनिया के ग़म ,रब की माया और सियासत की बातें ,
खुद से बाहर आ सकता तो, इन पर भी लिख देता।

एक जरा सी बात हमारी हैरानी का कारण है,
ख्वाब में हमने कुछ देखा था ,आंख खुली तो देखा कुछ।

हम तो अपने सपनों को सच करने में नाकाम रहे,
मेरी बेटी तू अंबर की छाती पर लिख देना कुछ ।

सबसे पहले खुद से लड़ना पड़ता है इस दुनिया में ,
खुद को हासिल करने पर ही दुनिया से मिलता है कुछ ।

जाने क्या क्या लिख कर हमने अपने दिल को समझाया,

अहसास हमारी तहरीरों में कुछ सच्चा था, झूठा कुछ।

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 516

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on April 30, 2019 at 10:21pm

आदरणीय दिगंबर जी और आदरणीय लक्ष्मण जी ग़ज़ल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक आभार

Comment by मनोज अहसास on April 30, 2019 at 10:20pm

आदरणीय समर कबीर साहब

बेशकीमती इस्लाह के लिए हार्दिक आभार

ग़ज़ल आपके सामने आते ही मैं निश्चिन्त हो जाता हूँ कि अब सब दोष निकल जाएंगे

सादर नमन

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 30, 2019 at 7:56pm

आ. भाई मनोज जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई । आ. भाई समर जी के सुझाव से गजल और निखर जायेगी।

Comment by Samar kabeer on April 29, 2019 at 3:32pm

जनाब मनोज कुमार अहसास जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

'आदमी सोच के कुछ चलता है,दुनिया में हो जाता कुछ'

इस मिसरे में 'आदमी' की जगह "इंसाँ" कर लें,गेयता बढ़ जाएगी ।

'मानव की इच्छाएं कुछ है, अर मालिक का लेखा कुछ'

इस मिसरे में 'इच्छाएं' बहुवचन है,इसलिए 'है' को "हैं" कर लें ।

'खुद से बाहर आ सकता तो, इन पर भी लिख देता'

इस मिसरे में आप रदीफ़ लिखना भूल गए ।

'हम तो अपने सपनों को सच करने में नाकाम रहे,
मेरी बेटी तू अंबर की छाती पर लिख देना कुछ'

इस शैर में शुतरगुरबा दोष देखें,ऊला मिसरे में 'हम' की जगह "मैं" और 'रहे' की जगह "रहा" कर लें,ऐब निकल जायेगा ।

'खुद को हासिल करने पर ही दुनिया से मिलता है कुछ '

इस मिसरे में रदीफ़ बदल गई है,मिसरा यूँ कर सकते हैं:-

'खुद को हासिल करने पर ही दुनिया से मिल पाता कुछ '

Comment by दिगंबर नासवा on April 24, 2019 at 9:14pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है मनोज जी ... 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
13 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
14 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
14 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
15 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
19 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार बहुत शुक्रिया आपने वक़्त निकाला बहुत आभारी हूँ आपका आपने बहुत माकूल इस्लाह…"
59 minutes ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय विकास जी। मतला, गिरह और मक़्ता तो बहुत ही शानदार हैं। ढेरो दाद और…"
1 hour ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलक राज जी सादर अभिवादन, ग़ज़ल के हर शेअर को फुर्सत से जांचने परखने एवं सुझाव पेश करने के…"
1 hour ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. जयहिंद रायपुरी जी, अभिवादन, खूबसूरत ग़ज़ल की मुबारकबाद स्वीकार कीजिए।"
3 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, सादर अभिवादन  आपने ग़ज़ल की बारीकी से समीक्षा की, बहुत शुक्रिया। मतले में…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको न/गर में गाँव/ खुला याद/ आ गयामानो स्व/यं का भूला/ पता याद/आ गया। आप शायद स्व का वज़्न 2 ले…"
5 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"बहुत शुक्रिया आदरणीय। देखता हूँ क्या बेहतर कर सकता हूँ। आपका बहुत-बहुत आभार।"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service