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एक नज़्म
अरकान-2212, 2212, 2212

दिल-ए-दरीया आब में तू ही तू है
हर इक लहर-ए-नाब में तू ही तू है

मौसम शगुफ़्ता है मुहब्बत में देखो
लाहौर ते पंजाब में तू ही तू है

हर इक वुज़ू पे हर दफ़ा मांगा तुझे
मेरी दुआ से याब में तू ही तू है

पकड़े हुए हूं आज तक दस्तार को
ख़ुर्शीद में महताब में तू ही तू है

हासिल कहाँ मुझको मेरे महबूब तू
फिर भी मेरे हर ख़्वाब में तू ही तू है

भीगी हुई पलकों का दामन छोड़ कर
बढ़ते हुए सैलाब में तू ही तू है

आब - पानी, जल, चमक
नाब - पवित्र
शगुफ़्ता -खिला हुआ
याब - प्राप्त होनेवाला, मिलनेवाला
ख़ुर्शीद - सूर्य
महताब - चाँद
सैलाब -नदी आदि के पानी की बाढ़ 

डिम्पल शर्मा
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dimple Sharma on June 11, 2020 at 11:23pm

आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी "पकड़े हुए हूँ आज तक दस्तार को" इस शेर को यदि यूं कर दूं तो कृपया देख कर बताएं ,अब रब्त हो रहा है या नहीं
2212, 2212, 2212
मैं देखती हूँ रात दिन ऊपर वहाँ
ख़ुर्शीद में महताब में तू ही तो है

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 11, 2020 at 11:21pm

Dimple Sharma जी ,आपने ठीक से तक्तीअ नहीं की है , दरिया-ए-दिल में आब में तू ही तो है / ख़ुर्शीद में महताब में तू ही तो है -मतला इसे बनाइये , हर एक लहर की नाब में तू ही तो है ( शाहिद जी ने हर एक इसलिए बताया कयोंकि लहर-ए-नाब =लहरे -नाब उच्चारण होगा जो कि २२१ बनता है , आप अगर लहर की नाब लिखती हैं तो वाक्य का कोई अर्थ नहीं निकलता क्योंकि लहर की पवित्र अर्थहीन है , जबकि लहरे -नाब का अर्थ पवित्र लहर होता है | ) मौसम शगुफ़्ता है मुहब्बत में देखो ( देखो=२२ होगा १२ नहीं ) ग़ज़ल के व्याकरण के बारे में अधिक जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें -https://www.amazon.in/dp/B089NDBGHR 

Comment by Dimple Sharma on June 11, 2020 at 11:05pm

नमस्ते आदरणीय आप सभी को इस ग़ज़ल को पुनः सुधार कर प्रस्तुत कर रही हूं, आपके सभी सुझावों को ध्यान में रखते हुए , परन्तु एक दुविधा है मतले में आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी के कहे अनुसार यदि इक को एक करती हूं तो मात्रा २१ हो जाती है फिर आगे का जो शब्द मैंने लिया है वो लहर है तो वहाँ गड़बड़ लग रही है कृप्या थोड़ा सा सुझाव एवं मार्गदर्शन करें, इसके अलावा मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है अधिक जानकारी है नहीं अतः आप सब के परामर्श पर आगे की राह निर्भर करती है , इसके अलावा एक शेर जो यूं है
"पकड़े हुए हूँ आज तक दस्तार को
ख़ुर्शीद में महताब में तू ही तो है"
इसमें मैंने यह कहने की कोशिश की है कि चाँद सूरज सभी में तेरी ही तो तस्वीर है सो बस जब से देखी है ऊपर ही तक रहा हूं पगड़ी सम्हाले हुए इधर उधर दाएं बाएं कहीं नहीं देखा , शायद मैं अपनी बात रखने में असफल हुई अतः क्षमा प्रार्थी हूँ ।

ग़ज़ल में अपनी समझ अनुसार जो सुधार किया है वो कुछ यूं है
2212, 2212, 2212
दरिया-ए-दिल आब में तू ही तो है
हर एक लहर की नाब में तू ही तो है

मौसम शगुफ़्ता है मुहब्बत में देखो
लाहौर ते पंजाब में तू ही तो है

हर इक वुज़ू पे हर समय माँगा तुझे
मेरी दुआ ओ ख़्वाब में तू ही तो है

पकड़े हुए हूँ आज तक दस्तार को
ख़ुर्शीद में महताब में तू ही तो है

हासिल कहाँ मुझको मेरे महबूब तू
फिर भी मेरे हर ख़्वाब में तू ही तो है

भीगी हुई पलकों का दामन छोड़ कर
बढ़ते हुए सैलाब में तू ही तो है

आब - पानी, जल, चमक
नाब - पवित्र
ख़ुर्शीद - सूर्य
महताब - चाँद
सैलाब -नदी आदि के पानी की बाढ़

Comment by Dimple Sharma on June 11, 2020 at 10:46pm

मैं इस ग़ज़ल को पुनः सुधार कर प्रस्तुत करुंगी ।

Comment by Dimple Sharma on June 11, 2020 at 10:45pm

आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत'तुरंत' जी आदरणीय Samar Kabeer साहब उस्ताद मोहतरम, आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी आप सभी को सर्व प्रथम प्रणाम, इस सफ़र में मैं अभी बिल्कुल नई हूँ तो गिरना पड़ना फिर उठना फिर गिरना तो लगा रहेगा परन्तु आप जैसे गुणी जनों के सानिध्य में मैं यक़ीनन एक दिन धीमी रफ्तार से ही सही पर चलना सीख जाऊंगी , आप सभी के सुझावों से इतना यक़ीन हो गया है कि इस ग़ज़ल को बेहतरी की आवश्यकता है और नज़्म और ग़ज़ल में अन्तर है इस तरह की शुरुआती चीजें अभी मुझे बहुत कुछ सीखनी बाकी है ! फिर भी मुझे जैसी अज्ञानी की ग़ज़ल पर आप सभी गुणी जनों की उपस्थिति और इसपर आप सभी की चर्चा और सुझाव के लिए मैं हृदय तल से आप सभी का आभार व्यक्त करती हूं ! आशीर्वाद बनाए रखें और आगे भी मार्गदर्शन करते रहें । आप सभी के मार्गदर्शन में मैं एक रोज जरुर कुछ अच्छा कर पाऊंगी ऐसा मुझे यकीन है ।

Comment by Samar kabeer on June 11, 2020 at 8:14pm

मुहतरमा डिम्पल शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,और जनाब 'तुरंत' जी और जनाब रवि भसीन जी ने उम्दा इस्लाह की है,ये सब बातें कहीं नोट करती जाएँ, आगे काम आएँगीं ,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

आपने इसका शीर्षक 'नज़्म' ग़लत दे दिया, नज़्म दूसरी तरह लिखी जाती है ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 11, 2020 at 7:57pm

आदरणीया Dimple Sharma जी, बहुत सुंदर रचना हुई है, आपको हार्दिक बधाई। आपने 'नज़्म' लिखा है, लेकिन मुझे लगता है ये ग़ज़ल के पैमानों पे पूरी उतरती है, बाक़ी उस्ताद-ए-मुहतम ही बता पाएँगे। आदरणीया, रदीफ़ में "तू ही तू है" 2212 के वज़्न पर बोलने में थोड़ा खटक रहा है, हालाँकि 'तू' का मात्रा पतन करके इसे 1 के वज़्न पर लिया जा सकता है। मेरा मशवरा है कि रदीफ़ को "में तू ही तो है" करने के बारे में विचार करें।

आदरणीया, मतले के दोनों मिस्रे बह्र में नहीं हैं। इज़ाफ़त इस्तेमाल करने से लफ़्ज़ का वज़्न भी बदल जाता है, जैसे:
दिल 2
दिल-ए-दरिया (दि ले दर या) 1222 या मात्रा पतन से 1122 (इज़ाफ़त लगाने से 'दि' की आवाज़ अलग हो कर 1 के वज़्न पर आ जाती है)
इस मिस्रे को यूँ कहा जा सकता है:
2212 / 2212 / 2212
दरिया-ए-दिल के आब में तू ही तो है

मतले का दूसरा मिस्रा 'इक' की बजाए 'एक' लिखने से बह्र में आ जाएगा, क्यूँकि 'इक' 2 के वज़्न पर होता है और 'एक' 21 के वज़्न पर।

/मौसम शगुफ़्ता है मुहब्बत में देखो/
आदरणीया, 'देखो' को 12 के वज़्न पर लेना मुनासिब नहीं है। शब्द के पहले अक्षर में ज़्यादातर मात्रा पतन नहीं किया जाता।

/हर इक वुज़ू पे हर दफ़ा मांगा तुझे/
जी, 'दफ़ा' का वज़्न 21 होता है, 12 नहीं।
'मांगा' को 'माँगा' कर लीजिये।

/पकड़े हुए हूं आज तक दस्तार को
ख़ुर्शीद में महताब में तू ही तू है/
जी दोनों मिस्रों में रब्त स्पष्ट नहीं हुआ।
'हूं' को 'हूँ' कर लीजिये। सादर

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 11, 2020 at 7:16pm

ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है , एक बात ध्यान में रखें , जब इज़ाफ़त और वाव-अत्फ़ द्वारा किसी शब्द को जोड़ा जाता है तो उसका उच्चारण और मात्रा बदल जाती है ,जैसे दिल-ए-दरिया =दिले दरिया = ११२२ या १२२२ उच्चारण होगा , दरिया को दरीया नहीं कर सकते ग़ज़ल में , और "ए " की अलग से मात्रा तब गिनी जाती है ,जब उससे पहले का अक्षर दो मात्रा का हो , जैसे दरिया-ए-दिल =२२१२ लिया जा सकता है | तो आपका शेर होगा -दरिया-ए-दिल में आब में तू ही तू है , इसी तरह इजाफ़ात सिर्फ उर्दू/फ़ारसी के शब्दों के बीच में हो सकती है हिंदी शब्दों के बीच नहीं , लहर-ए-नाब भी गलत प्रयोग है | इस बारे में ठीक से पढ़ें तब इज़ाफ़त का प्रयोग करें | मेरी दुआ से याब में तू ही तू है ,इस मिसरे का अर्थ स्पष्ट नहीं है | फिर भी आपके प्रयास की दिल से दाद हाज़िर है | 

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