For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हम तो हल के दास ओ राजा-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२/२२/२२/२२


हम तो हल के दास ओ राजा
कम देखें  मधुमास  ओ राजा।१।
*
रक्त  को  हम  हैं  स्वेद  बनाते
क्या तुमको आभास ओ राजा।२।
*
अन्न तुम्हारे पेट में भरकर
खाते हैं सल्फास ओ राजा।३।
*
पीता  हर  उम्मीद  हमारी
कैसी तेरी प्यास ओ राजा।४।
*
हम से दूरी  मत  रख इतनी
आजा थोड़ा पास ओ राजा।५।
*
खेती - बाड़ी  सब  सूखेगी
जो तोड़ेगा आस ओ राजा।६।

मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Views: 1491

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 20, 2021 at 1:23pm

आ. भाई राम आशरे जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद।"

Comment by Ram Ashery on May 20, 2021 at 11:40am
अति सुंदर अभिव्यक्ति बहुत बहुत बधाई स्वीकार हो
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 6, 2021 at 11:42am

आ. अमिता जी, गजल पर उपस्थिति व स्नेह के लिए आभार ।

Comment by amita tiwari on May 6, 2021 at 1:44am

पीता  हर  उम्मीद  हमारी
कैसी तेरी प्यास ओ राजा

बहुत उत्तम ,बहुत सटीक  गागर मे सागर । वाह बधाई 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 13, 2021 at 5:40pm

आ. भाई विजय निकोर जी , सादर अभिवादन। आपकी मनभावन उपस्गथिति से लेखन सफल हुइ। गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 13, 2021 at 5:38pm

आ. रचना बहन , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।

Comment by vijay nikore on February 13, 2021 at 4:54pm

प्रिय मित्र लक्ष्मण जी, गज़ल अच्छी लगी। बधाई।

Comment by Rachna Bhatia on February 13, 2021 at 10:49am

आदरणीय लक्ष्मण धामी'मुसाफ़िर'जी नमस्कार। शानदार ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 12, 2021 at 7:01pm

आ. भाई क्रिस मिश्रा जी, गजल पर उपस्थिति व मनभावन टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 11, 2021 at 9:11pm

वाह! अद्भुत ग़ज़ल हुई है बेहतरीन, लाज़वाब।बहुत बहुत बधाई बड़े भैया।

इस ग़ज़ल की सबसे प्यारी बात मुझे ये लगी कि... ऐसा लगता है जैसे स्वत: अंतर्मन के भाव फूट पड़ें हो, कोई भी ऊपरी बनावट नहीं की गई है।पुनः बधाई और शुभकामनाएं बड़े भैया।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद जी आदाब, बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है बहुत बधाई।"
42 minutes ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"लक्ष्मण धामी जी अभिवादन, ग़ज़ल की मुबारकबाद स्वीकार कीजिए।"
48 minutes ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय दयाराम जी, मतले के ऊला में खुशबू और हवा से संबंधित लिंग की जानकारी देकर गलतियों की तरफ़…"
52 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी, तरही मिसरे पर बहुत सुंदर प्रयास है। शेर नं. 2 के सानी में गया शब्द दो…"
2 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"इस लकीर के फकीर को क्षमा करें आदरणीय🙏 आगे कभी भी इस प्रकार की गलती नहीं होगी🙏"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय रिचा यादव जी, आपने रचना जो पोस्ट की है। वह तरही मिसरा ऐन वक्त बदला गया था जिसमें आपका कोई…"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय मनजीत कौर जी, मतले के ऊला में खुशबू, उसकी, हवा, आदि शब्द स्त्री लिंग है। इनके साथ आ गया…"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी ग़जल इस बार कुछ कमजोर महसूस हो रही है। हो सकता है मैं गलत हूँ पर आप…"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बुरा मत मानियेगा। मै तो आपके सामने नाचीज हूँ। पर आपकी ग़ज़ल में मुझे बह्र व…"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, अति सुंदर सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सादर अभिवादन। लम्बे समय बाद आपकी उपस्थिति सुखद है। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक…"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल 221, 2121, 1221, 212 इस बार रोशनी का मज़ा याद आगया उपहार कीमती का पता याद आगया अब मूर्ति…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service