For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल (दिलों से ख़राशें हटाने चला हूँ )

122 - 122 - 122 - 122

(भुजंगप्रयात छंद नियम एवं मात्रा भार पर आधारित ग़ज़ल का प्रयास) 

दिलों  में उमीदें  जगाने  चला हूँ 

बुझे दीपकों को जलाने चला हूँ 

कि सारा जहाँ देश होगा हमारा 

हदों के निशाँ मैं मिटाने चला हूँ 

हवा ही मुझे वो  पता  दे गयी है 

जहाँ आशियाना बसाने चला हूँ

चुभा ख़ार सा था निगाहों में तेरी 

तुझी से निगाहें  मिलाने चला हूँ

ख़तावार  हूँ  मैं  सभी दोष  मेरे 

दिलों  से ख़राशें  हटाने चला हूँ

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 1649

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2021 at 8:46am

आदरणीय समर साहब, बाह्य लिंकों को इस पटल पर उद्धृत करने की मनाही है. इसलिए मैंने उद्धरण के तौर पर उक्त पॉरा को कोट किया है.

आप आ० पंकज भाई के पोस्ट पर जा कर आश्वस्त हो सकते हैं. 

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2021 at 8:40am

आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, यह अच्छा है कि इसी बहाने विधान पर तार्किक चर्चा हो पा रही है जो ओबीओ के पटल की विशेषता होने के बावजूद यह एक लंबे अरसे से नहीं हो पा रही थी. 

आप उद्धरण को केवल सतही और शाब्दिक तौर पर ले रहे हैं. हुजूर, 'ए' का काफिया आदरणीय पंकज जी के हवाले से है. जबकि आपके हवाले से तो काफिया 'आने' बन रहा है. आपही की ग़ज़ल के मतले से यह निर्धारित हो रहा है न ? 'जगाने' और 'जलाने' से काफिया अलबत्ता 'आने' ही निकलेगा. आपके मतले से केवल 'ए' का काफिया कैसे निर्धारित हो सकता है.

'आने' के बाद दोनों शब्दों के बच गये शब्द क्या बाकी रहते हैं ? शर्तिया, 'जग' और 'जल' ! यही तो एक प्रारंभ से मेरा निवेदन है कि आपके काफिया निर्धारण में ईता का ऐब है. मैं तो छोटी इता और बड़ी ईता की बात ही नहीं कर रहा हूँ. 

विश्वास है, तथ्य स्पष्ट हो पाया है. 

सादर

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 16, 2021 at 5:18pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब, जनाब पंकज सुबीर जी के पटल से उद्धृत जानकारी इस मंच पर साझा करने के लिए आपका शुक्रगुज़ार हूँ जो आपकी पूर्व में की गई टिप्पणी "आने’ के काफिया पर ’जग’ और ’चल’ पूर्ण शब्द निर्धारित हो रहे हैं जो इता के ऐब या दोष का कारण बना रहे हैं" में दी गई फाइंडिंग के विपरीत है, यानी यहाँ आप ख़ुद को दुरुस्त कर रहे हैं और मुझे सही साबित कर रहे हैं। 

बेशक 'पंकज सुबीर जी ग़ज़ल विधा को लेकर अत्यंत सजग तथा अरूज पर उस्तादी पकड़ रखने वाले आज के साहित्यिक परिवेश में सशक्त हस्ताक्षर हैं, , मैं आपके इस कथन से सहमत हूँ।

उनके पटल से आपके द्वारा साझा की गई जानकारी के मुताबिक़-

"मतले में 'रहे' के साथ  'सुने ' या 'कहे ' या  'भरे 'को बाँधा तो उससे ईता का दोष बनेगा। आपको बस मतले में एक क़ाफ़िया ऐसा रखना है जिसमें “ए” की मात्रा हटाने के बाद कोई प्रचलित शब्द न बचे। जैसे रहे में से ए हटेगा तो रह बचेगा, जो एक शब्द है। जागते में से ए हटेगा तो जागत बचेगा जो कोई शब्द नहीं है। तो बस मतले में यह सावधानी रखनी है कि एक मिसरे का क़ाफ़िया ऐसा हो, जिसमें से “ए” हटाने पर कोई प्रचलित शब्द नहीं बचे।" 

अब पुन: मेरी ग़ज़ल के मतले के क़वाफ़ी 'जगाने' और 'जलाने' को कोट की गयीं अण्डर-लाईन के सन्दर्भ में देखें जिसके अनुसार क़वाफ़ी में से "ए" हटाने पर 'जगान' और 'जलान' अपूर्ण या अप्रचलित शब्द बचते हैं, अर्थात क़वाफ़ी ईता के दोष से मुक्त हैं। सादर। 

Comment by Samar kabeer on October 16, 2021 at 4:19pm

//निम्नलिखित उद्धरण का संज्ञान लें, जो आज ही पोस्ट हुआ है और अभी सौभाग्य से मेरी नजर में आ गया//

ये आलेख कहाँ पोस्ट हुआ है,बराह-ए-करम लिंक भेजें ताकि हम भी पढ़ सकें । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 16, 2021 at 11:51am

सुधीजन मुझसे असहमत हों, यह संभव है. तार्किक असहमति का स्वागत भी होना चाहिए. किन्तु, अरूज की बारीकियों को नजरन्दाज नहीं किया जा सकता न ! 

निम्नलिखित उद्धरण का संज्ञान लें, जो आज ही पोस्ट हुआ है और अभी सौभाग्य से मेरी नजर में आ गया. 

आपने मतले में 'रहे' के साथ  'सुने ' या 'कहे ' या  'भरे 'को बाँधा तो उससे ईता का दोष बनेगा। आपको बस मतले में एक क़ाफ़िया ऐसा रखना है जिसमें “ए” की मात्रा हटाने के बाद कोई प्रचलित शब्द न बचे। जैसे रहे में से ए हटेगा तो रह बचेगा, जो एक शब्द है। जागते में से ए हटेगा तो जागत बचेगा जो कोई शब्द नहीं है। तो बस मतले में यह सावधानी रखनी है कि एक मिसरे का क़ाफ़िया ऐसा हो, जिसमें से “ए” हटाने पर कोई प्रचलित शब्द नहीं बचे। 

यह उद्धरण ग़ज़ल विधा को लेकर अत्यंत सजग तथा अरूज पर उस्तादी पकड़ रखने वाले आज के साहित्यिक परिवेश में सशक्त हस्ताक्षर पंकज सुबीर द्वारा अपने पटल पर आज ही चस्पाँ किया गया है. 

अर्थात हम अनावश्यक तर्कों से बचें. बाकी, मैं विधाओं की अवधारणाओं पर मूलभूत बिन्दुओं के साथ उपस्थित होता रहूँगा. 

सादर

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 14, 2021 at 2:39pm

आदरणीय निलेश शेवगाँवकर 'नूर' साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी तशरीफ़-आवरी, इस्लाह और संबल प्रदान करने के लिए बेहद शुक्रिया।

//हदों के निशाँ मैं मिटाने चला हूँ ... निशाँ सरहदों के मिटाने चला हूँ..अधिक बेहतर होता..// सहमत हूँ। ग़ज़ल छंद आधारित न होती तो मैं भी यही करता, हालांकि मस्लह्तन सरहद के विकल्प के तौर पर 'हद' को लिया जाना भी न्यायोचित है।

'ख़तावार हूँ मैं सभी दोष मेरा' मिसरे पर आपका सुझाव अनुकरणीय है।

//दिलों से ख़राशें हटाने चला हूँ.. खराशें हटती नहीं मिटती हैं..बहुत बारीक सा अंतर है//

जी दुरुस्त फ़रमाया अगर तबीब इलाज करे तो ख़राशें धीरे-धीरे ही मिटती हैं लेकिन अगर दर्द और ख़राशें देने वाला ख़ुद ही दवा करे तो ख़राशें एक झटके में हट जाया करती हैं। सादर। 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 14, 2021 at 9:15am

आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,
मैं इसे ग़ज़ल के तौर ही पर देख रहा हूँ.. छंद अथवा बह्र के नाम में उलझने का कोई इरादा नहीं है मेरा.
मतला अच्छा हुआ है.. आ. सौरभ सर की बात से असहमत हूँ 
जगाने और जलाने में काफ़िया आ मात्रिक हो गया है जो पूर्णत: शास्त्र सम्मत है ..
हदों के निशाँ मैं मिटाने चला हूँ ... निशाँ सरहदों के मिटाने चला हूँ..अधिक बेहतर होता.. हद और सरहद का अंतर आप जानते ही हैं.
ख़तावार  हूँ  मैं  सभी दोष मेरा .. ये मिसरा अपूर्ण लग रहा है.. सभी दोष के साथ मेरा नहीं मेरे आना चाहिए ..साथ ही 

ख़तावार  हूँ  मैं  सभी दोष मेरा 

दिलों  से ख़राशें  हटाने चला हूँ..इन मिसरों में रब्त नहीं हैं .. साथ ही खराशें हटती नहीं मिटती हैं..बहुत बारीक सा अंतर है
ग़ज़ल के लिए बधाई 
सादर 

.
 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 13, 2021 at 8:23pm

आदरणीय नाथ सोनांचली जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया ।

मेरे छोटे से प्रयास से आपका उत्साहवर्धन हुआ ये ख़ुशी की बात है।  सादर। 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 13, 2021 at 8:21pm

आदरणीय छन्द-शास्त्री सौरभ पाण्डेय जी आदाब, ख़ाकसार की छंद आधारित ग़ज़ल पर आपकी आमद ही स्वयं में अनुकंपा है, इस से भी बढ़कर आपके वचनों के शुभत्व और आशीर्वाद से जो उत्साह का संचार मुझे प्राप्त हुआ है वह अभूतपूर्व है जिसके लिए मैं आपका हृदयगत आभारी हूँ। 

अवश्य ही ग़ज़ल को अरूज़ की कसौटी पर परखना अपरिहार्य है, मतले - 

"दिलों  में उमीदें जगाने चला हूँ 

बुझे दीपकों को जलाने चला हूँ"  में आपने ईता का दोष होना माना है, जिस से मैं सहमत नहीं हूँ। जहाँ तक मेरी जानकारी है क़ाफ़िया दोष-रहित होने के लिए ज़रूरी है कि 

१. मतले में या तो दोनों क़वाफ़ी विशुद्ध मूल शब्द हों, अथवा

२. एक मूल शब्द हो और दूसरा ऐसा शब्द जिसमें कुछ अंश बढ़ाया गया हो, अथवा

३. दोनों ही क़वाफ़ी से बढ़ाये हुए अंश निकाल देने पर समान तुकांत शब्द ही शेष रहें, अथवा दोनों ही बढ़ाये हुए अंशों वाले क़ाफ़ियों में व्याकरण भेद हो, अथवा

४. दोनों क़ाफ़ियों में बढ़ाए हुए अंश समान अर्थ न दें.

जैसा कि आपने बताया ’आने’ के क़ाफ़िया पर ’जग’ और ’जल’ पूर्ण शब्द निर्धारित हो रहे हैं, लेकिन चूंकि शब्द 'जलाने' और 'जगाने' में बढ़ाए गये अंश 'ने' हैं तथा बचे मूल शब्द 'जला' और 'जगा' 'आ' की समान तुकांतता है अत: क़वाफ़ी दोष रहित एवं दुरुस्त हैं, 'जगाने' और 'जलाने' के मूल शब्द 'जग' और 'जल' नहीं हो सकते हैं क्योंकि 'जलाने' से शेष बचा शब्द 'जल' का स्वतंत्र रूप से अर्थ 'पानी' तथा 'जगाने' से शेष बचा शब्द 'जग' का का स्वतंत्र रूप से अर्थ 'जगत' होता है, अतः उपरोक्त नियमों के परिप्रेक्ष्य में क़वाफ़ी ईता के दोष से मुक्त हैं अर्थात दुरुस्त हैं। फिर भी अगर मुझसे कोई चूक हो रही हो या ग़लत-बयानी हो गई हो तो मुझे दुरूस्त करने की कृपा करें। ऐन नवाज़िश होगी।  सादर।

Comment by नाथ सोनांचली on October 13, 2021 at 4:08pm

आद0 अमीरुद्दीन "अमीर" जी सादर अभिवादन।

भुजंगप्रयात छ्न्द पर बेहतरीन प्रयास किया है आपने। आपके इस प्रयास से मेरा भी उत्साह बढ़ा है। बहुत बहुत बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. रचना बहन, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा हुआ है। भाई अमित जी के सुझाव भी अच्छे हैं।…"
1 hour ago
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"जी भाई  मैं सोच रही थी जिस तरह हम "हाथ" ,"मात ",बात क़वाफ़ी सहीह मानते…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"पाँचवें शेर को यूँ देखें वो 'मुसाफिर' को न भाता तो भला फिर क्योंकर रूप से बढ़ के जो रूह…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई संजय जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. रचना बहन, तर की बंदिश नहीं हो रही। एक तर और दूसरा थर है।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए बहुत बहुत बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"कर्म किस्मत का भले खोद के बंजर निकला पर वही दुख का ही भण्डार भयंकर निकला।१। * बह गयी मन से गिले…"
6 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय चेतन जी नमस्कार बहुत अच्छा प्रयास तहरी ग़ज़ल का किया आपने बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी की…"
7 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी नमस्कार बहुत ही ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये एक से एक हुए सभी अशआर और गिरह…"
7 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय अमित जी नमस्कार बेहतरीन ग़ज़ल हुई आपकी बधाई स्वीकार कीजिये मक़्ता गिरह ख़ूब, हर शेर क़ाबिले तारीफ़…"
7 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"2122 1122 1122 22/112 घर से मेले के लिए कौन यूँ सजकर निकलाअपनी चुन्नी में लिए सैकड़ों अख़्तर निकला…"
7 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service