For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शठ लोग अब पहनकर चोला ये गेरुआ सा - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२२/२२१/२१२२


हँसना सिखाया हमने आँखों के आँसुओं को
सम्बल दिया है हरपल  कमजोर बाजुओं को।१।
*
कहती है रूह उन  की  बलिदान जो हुए थे
पहचान कर  हटाओ  जयचन्द पहरुओं को।२।
*
शठ लोग अब पहनकर चोला ये गेरुआ सा
करने लगे हैं निशिदिन बदनाम साधुओं को।३।
*
उनको तमस भला क्यों जायेगा ऐसे तजकर
बैठे जो बन्द कर के  दिन  में भी चक्षुओं को।४।
*
कैसे वसन्त आये पतझड़ को रौंद के फिर
हर डाल न्योतती जब इस बाग उल्लुओं को।५।
*
कहते हैं उस ने की  है  हाथों की ढब सफाई
छूकर जो देखना है अबतक के अनछुओं को।६। 
*
उनसे हुआ जो परिचय बदनामियाँ मिलेंगी
पर्दानशीं ही रखना  अनजान  पहलुओं को।७।


**
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Views: 784

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 8, 2021 at 9:42pm

आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 8, 2021 at 11:11am

आदरणीय धामी जी अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई...

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 6, 2021 at 4:56am

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर
उपस्थिति, उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद। गुणीजनो के सुझावानुसार मतले व मक्ते दोनों में बदलाव किया है देखिएगा।
//हँसना सिखाओ यारो सब के ही आँसुओं को
सम्बल सदा ही देना कमजोर बाजुओं को।१।
//सम्मुख न आने देना अनजान पहलुओं को।७।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 6, 2021 at 4:53am

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। गजल पर
उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 6, 2021 at 4:52am

आ. भाई आज़ी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर
उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 6, 2021 at 4:51am

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर
उपस्थिति, उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद। इंगित मिसरे में बदलाव किया है देखियेगा।
//सम्मुख न आने देना अनजान पहलुओं को।७।

मतले में भी कुछ बदलाव किया है इसे भी देखिएगा।


हँसना सिखाओ यारो सब के ही आँसुओं को
सम्बल सदा ही देना कमजोर बाजुओं को।१।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 6, 2021 at 4:47am

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। गजल पर
उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 6, 2021 at 4:46am

आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद। मतले में कुछ बदलाव किया है देखिएगा।

हँसना सिखाओ यारो सब के ही आँसुओं को
सम्बल सदा ही देना कमजोर बाजुओं को।१।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on November 5, 2021 at 9:03pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ, मतले और मक़्ते पर गुणीजनों से सहमत हूँ।  सादर। 

Comment by TEJ VEER SINGH on October 31, 2021 at 7:13pm

हार्दिक बधाई आदरणीय मुसाफ़िर जी। बेहतरीन ग़ज़ल।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
14 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service