For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

221 2121 1221 212

आँखों को रतजगे मिले हैं जल भराव भी
उल्फ़त में दुख मिले तो मिले गहरे भाव भी

कानों को आहटें सुने बर्षों गुज़र गये
बुझने लगे हैं आँखों के जलते अलाव भी

कुछ इसलिये खमोशियाँ ये रास आ गईं
दुनिया न जान ले कहीं अंतस के घाव भी

गर डूबना नसीब है तो फ़िक़्र क्यों करूँ
दरिया में अब उतार दी है टूटी नाव भी

वो साथ दे सका न बहुत देर तक मेरा
इक तो हवा ख़िलाफ़ थी उसपे बहाव भी

वो चाँद है,वो चाँद भला किसका हो सका
बे-वज़्ह क्यों बढ़ा रहे पीड़ा तनाव भी

सुधबुध गवाँ के रात में उसको निहारना
अच्छा नहीं है चाँद से 'ब्रज' ये लगाव भी

(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 635

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 2, 2022 at 7:22pm

आपके शब्दों से अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हुआ आदरणीय भसीन जी...आपकी सलाह सर्वथा उचित है।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on November 2, 2022 at 5:23pm

नहीं नहीं जनाब-ए-'आली, ऐसी बात नहीं है। बस इसी तरह इस्लाह करने वालों से और अपने शोध और अध्ययन से एक एक लफ़्ज़ का वज़्न पता चलता जाता है। किसी लफ़्ज़ के वज़्न या इस्तेमाल में शक हो तो rekhta dictionary से चैक कीजिये। आपकी शायरी में जो उर्दू और हिंदी का मिश्रण है उसके कारण एक अलग रस है इसमें, एक अनूठा अंदाज़ है आपका, इसलिए उर्दू के अलफ़ाज़ को इस्तेमाल करने से गुरेज़ करना न शुरू कर दीजियेगा, शुभकामनाएँ

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 2, 2022 at 12:50pm

हाहाहा... बहुत मुश्किल है...उर्दू,अरबी,फ़ारसी शब्दों का इस्तेमाल हम जैसों के लिए...बेहतर होगा हम ज्यादातर हिंदी शब्दों का ही उपयोग करें।धन्यवाद आदरणीय भसीन साहब...आपका सुझाव अच्छा है।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on November 2, 2022 at 9:37am

आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' साहिब, सादर अभिवादन। जनाब 'ख़्वाह-मख़ाह' को 21121 के वज़्न पर लेना पड़ेगा।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 2, 2022 at 8:03am

रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनंदन एवं आभार आदरणीय भसीन साहब...उर्दू,अरबी,फ़ारसी शब्द में गलतियाँ हो जातीं हैं सामान्य बोलचाल के कारण...वैसे इसकी जगह "खामखा" रखा जा सकता है।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on November 1, 2022 at 11:04pm

आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' साहिब, बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही है आपने, इस पर आपको दाद और मुबारकबाद पेश करता हूँ। जनाब छटे शे'र के सानी में 'बे-वजह' दरअसल 'बे-वज्ह' है, 221 के वज़्न पर होना चाहिये। इस मिस्रे को यूँ कर सकते हैं: बे-वज्ह क्यों बढ़ा रहे...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
51 minutes ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
1 hour ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service