भूख की चौखट पे आकर कुछ निवाले रह गए
फिर से अंधियारे की ज़द में कुछ उजाले रह गए
आपकी ताक़त का अंदाजा इसी से लग गया
इस दफे भी आप ही कुर्सी संभाले रह गए
लाख कोशिश की मगर फिर भी छुपा ना पाए तुम
चंद घेरे आँख के नीचे जो काले रह गए
जब से मंजिल पाई है होता नहीं है दर्द भी
देते हैं आनंद जो पाओं में छाले रह गए
जम गए आंसू, चुका आक्रोश, सिसकी दब गई
इस पुराने घर में बस चुप्पी के जाले रह गये
अब डुबा दे या कि पहुंचा दे मुझे उस पार तू
हम तो सब कुछ भूलकर तेरे हवाले रह गए
उनसे बढ़कर इस जहाँ में है नहीं कोई धनी
अपने पुरखों की विरासत जो संभाले रह गए
Comment
आदरणीय राणा जी
ग़ज़ब का लिखा है आपने..जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है..
ये दो शेर तो बस..लाजवाब
भूख की चौखट पे आकर कुछ निवाले रह गए
फिर से अंधियारे की ज़द में कुछ उजाले रह गए
जब से मंजिल पाई है होता नहीं है दर्द भी
देते हैं आनंद जो पाओं में छाले रह गए
आदरणीया
asha pandey ojha दीदी
और आदरणीय
arun kumar nigam जी और N .B. Nazeel साहब दाद के लिए शुक्रिया|
सौरभ सर आपने गज़ल यहाँ पर देखी भी है और दिल खोलकर दाद भी दी थी
:-):-):-):-):-):-):-)
कई-कई बार सुना है आपसे इस ग़ज़ल को. और भरपूर, दिल खोल कर हमने दाद दी है हर एक शे’र पर. परन्तु, आज इस ग़ज़ल को यहाँ देखा तो आश्चर्य हुआ कि मैं अबतक इस ग़ज़ल को यहाँ कैसे नहीं देख पाया था !. ..
जम गए आंसू, चुका आक्रोश, सिसकी दब गई
इस पुराने घर में बस चुप्पी के जाले रह गये......वाह एक से बढ़कर एक शेर
nice ...:-)
उनसे बढ़कर इस जहाँ में है नहीं कोई धनी
अपने पुरखों की विरासत जो संभाले रह गए I am speechless really
great
राणा जी , आपके सात शेरों में हमने इंद्र धनुष के सात रंग देखे, क्रमवार रंग देखिए ;-
1) हालत 2) सियासत 3) हकीकत 4) मोहब्बत 5) रवायत 6) इनायत और 7) विरासत
आदरणीय,
वीनस केशरी जी
विवेक मिश्र जी
Lata R.Ojha जी
dilbag virk जी
और
आप सभी ने अपना अमूल्य समय निकाल कर उत्साहवर्धन किया इसलिए बहुत बहुत आभार|
bahut khoobsurat ..ek ek sher umda...
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