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बचपन का क्या बयान करू, कुछ याद नहीं रहा दुनियादारी में, 

बस ये नहीं भूला की माँ जागती थी रात भर, मेरी हर बीमारी में. 


मै भूखा हूँ, मुझको सताया है ज़माने भर ने नादान समझ कर, 

ये बातें उसको कैसे पता चल जाती है, घर की चाहर-दीवारी में. 


उसे भी मालूम है कि, घर के बाजू में मलमल की कई दूकाने है,

बेटे की हौसला अफजाई करती है सूती धोती की खरीददारी में.  


सीना तान के करता हूँ हर तूफानी हवा-पानी का सामना मै. 

मेरी माँ की दुआ की छतरी साथ चलती है मेरी रखवारी में. 


मलाल है मुझे गुडिया ही खेलने को मिला, बहनो से छोटा था, 

राखी के सौ रुपये से, घरोदे की मुक्कमल छत आई मेरी बारी में. 


मै क्यूँ अपनी माँ को इस कदर चाहता हूँ, ये बात समझ गई! 

मेरी शरीक-ए-हयात भी जब पहुँच गयी माँ की बिरादरी में. 


उधार की कील पर, दो कमरो के ताबूत जैसा था ये मकान,

माँ की चिट्ठी आई, और घर रोशन हो गया दुआ की चिंगारी में. 


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Comment

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Comment by वीनस केसरी on March 23, 2012 at 12:55pm

वाह
बचपन की बातों को कितने सुन्दर ढंग से याद किया है
हर शेर सुन्दर बन पड़ा है
वाह वा

आनंद आ गया

वैसे बचपन में आप बिलकुल बच्चे ही थे
हा हा हा

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 3, 2012 at 11:03am

योगराज जी, आपकी प्रसंशा से गदगद हो गया हू, बहुत बहुत धन्यवाद.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 3, 2012 at 10:44am

बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल के ज़रिये माँ को बेहद प्रभावशाली काव्यांजलि पेश की है आदरणीय त्रिपाठी जी. मेरी बहुत बहुत मुबारकबाद स्वीकार करें.

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 2, 2012 at 7:40pm

आशुतोष जी सोचते सब लोग होंगे, बस दुनियादारी मे इधर उधर भाटक जाते हैं, बाकी तो मा का प्यार दिल की गहराइयों मे हमेशा बसता है. आपकी हौसला अफजाई से बहुत फ़र्क पड़ेगा मेरी रचनाओ पर भविष्या मे. धन्यवाद.

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 2, 2012 at 2:06pm

Dhanyavaad Mahima Ji.

Comment by MAHIMA SHREE on March 2, 2012 at 11:19am
सीना तान के करता हूँ हर तूफानी हवा-पानी का सामना मै.
मेरी माँ की दुआ की छतरी साथ चलती है मेरी रखवारी में,
बहुत खूब......यही तो इक सहारा है. जिंदगी मे ...राकेश जी..
Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 2, 2012 at 9:23am

माननीयप्रदीप जी, धन्यवाद.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 1, 2012 at 10:45pm

उधार की कील पर, दो कमरो के ताबूत जैसा था ये मकान,

माँ की चिट्ठी आई, और घर रोशन हो गया दुआ की चिंगारी में.

maa tujhe salam. badhai.

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 1, 2012 at 11:55am

Wahid bhai bahut bahut dhanyavaad.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 1, 2012 at 11:24am

मर्मस्पर्शी भाव पेश किये आपने राकेश जी| बहुत ख़ूब..

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