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शुभ्रांशु जी के हास्य लेखन से प्रेरित हो कर एक हास्य लिखने की कोशिश ...........

जब भी शुभ्रांशु जी के हास्य-व्यंग्य के लेख पढ़ती हूँ ...लगता है कितनी आसानी और सहजता से से वो सब कुछ लिख जाते हैं और हँसा भी देते हैं ......एक दिन अचानक ही लगा दरअसल वो आसानी से लिख नहीं जाते है बल्कि यह लिखना बहुत आसान है l  क्यों न मै भी कुछ  हास्य व्यंग टाइप की चीज़ लिखूँ .

कविता में तो बड़ी पेचीदगियां है ..... एक कविता लिखने में तो कभी कभी कई दिन लग जाते हैं l इस चक्कर में कई-कई दिनों तक कुछ पोस्ट नहीं कर पाती l औरों की पोस्ट पर जाकर वाह, बहुत खूब ,क्या कहने ,क्या बात जैसे जुमले कहना तभी अच्छा लगता है जब अपनी पोस्ट पर वो पलट कर वापस आते रहें ......कमसे कम ये आलेख इस उगाही के काम तो आयेंगे l हर दिन ना सही दो - तीन दिन में तो एक लिख ही लूंगी l और जब वो लिख सकते हैं तो मै क्यों नहीं l मै तो कविता सुनाने के लिए कभी किसी लाला के आगे-पीछे नहीं घूमी और न ही कभी किसी सम्मलेन स्थल से डर कर फरार हुयी क्यों कि  इतनी समझ मुझे पहले से ही है कि अपनी भद पिटवाने में कोई समझदारी नहीं     l मंच पर चढ कर धराशायी होने से ज्यादा अच्छा है, नेट पर ही जमे रहो ......जब आसान रास्ता सामने हो तो फिर हमेशा कठिन राह पर ही क्यों डटे रहना l और मै कौन सा इसे फुल टाइम जॉब बनाने जा रही हूँ 


तुरंत ही निर्णय ले लिया आज से मै भी हास्य-व्यंग्य के आलेख लिखूंगी l


बस कागज़ कलम के साथ पक्का इरादा धारण कर बैठ गयी लिखने l.कुछ भी तो मुश्किल नहीं है .....इसके,उसके ,अपने किसी के भी एक पूरे दिन का ब्योरा लिख दूंगी l आम आदमी का हर एक दिन किसी हास्य से कम थोड़े ही होता है ...शुभ्रांशु जी ने भी तो आम सी बात को खास बना कर लिख दिया है जब वो लिख सकते हैं तो मै क्यों नहीं l एक बार फिर अभिमान जागा

अब समय था विषय निश्चित करने का,

लिखूं तो आखिर किस विषय पर ...राजनीति पर ????....अरे नहीं!!!!! इस पर तो पहले भी बहुत कुछ लिखा जा चुका है l आए दिन यहाँ -वहाँ छपने वाले नेताओं के कार्टून ,पैरोडी,और चुटकुलों से लोग बोर हो चुके हैं ..साथ ही लिखने वाले हद से बहुत आगे के स्तर तक की बातें लिख चुके हैं l उस स्तर से कम की बात लोगों को हँसा नहीं पायेगी ,और यदि स्तर थोडा सा भी ज्यादा हो गया तो देश द्रोह के मामले में जेल जाने का खतरा ....मुझे अपने लिए जमानत के भी कोई आसार नहीं दिख रहे थे ...पतिदेव तो शायद खुद जेल तक पहुंचा के आयेंगे इस सोंच के साथ कि ,रात-दिन की कंप्यूटर और कविता बाज़ी के जंजाल से कुछ दिन तो राहत होगी ...और ये कलयुगी बच्चे मेरे जेल जाने की भट्टी में भी अपनी मौज-मस्ती की रोटी ही सकेंगे l टीवी वालों को, अखबार वालों को, रेडियो वालों को इंटरव्यू देने के चक्कर में इन्हें ये भी जरूरी नहीं लगेगा कि माँ को जेल से बाहर भी लाना है l रोज नए चैनेल्स पर इंटरव्यू देने के लिए नयी बुशर्ट -जींस खरीदने पर जो पैसे उडाये जायेंगे सो अलग l
न बाबा न ऐसा रिस्क नहीं लेना मुझे अतः राजनीति को विषय के रूप में हमेशा के लिए निरस्त घोषित कर दिया l

फिर सोचा धर्म पर ,अंधविश्वास या ढोंगी बाबाओं पर लिखूँगी बढ़िया मसाला मिलेगा ...
परन्तु कुछ अडंगा यहाँ भी दिखा l इस विषय पर कुछ लिखने से सबसे पहली बगावत तो मेरे मायके से ही तोहफे के रूप में आने वाली है ........मेरी धर्मपरायण माँ मेरी शुद्धि के लिए जाने कितने मंदिरों के चक्कर लगा डालेगी l कितने ही पंडितों को हवन पूजा के लिए न्योत देगी l जितनी बार कोई पंडित मेरी पत्री देखकर किसी बुरे परिणाम की घोषणा करेगा वो फोन पर पूरे विस्तार से बचने के उपाय सहित चर्चा करेगी l पापा ,भैया,भाभी और भतीजों का कोप भाजक मुझे ही बनना पडेगा ..... माँ के इन सब शागूफों में होने वाले खर्चो का जो रायता फैलेगा, भाभी उस सारी रकम को तीज त्योहारों पर मुझे मिलने वाली साड़ी की क्वालिटी घटा कर पूरा करेगी न न न ,मुझे अपनी साड़ी बहुत प्यारी है l मतलब यह टौपिक भी कैंसिल l

काम वाली बाई ? न न उसका मजाक नहीं उड़ा सकती क्योंकि उससे बड़ा भगवान तो इस धरती पर मेरे लिए कोई और है ही नहीं l बहुत श्रद्धा रखती हूँ उस पर मै ..उसके लिए हफ्ते में एक दिन व्रत तक रखती हूँ इस कामना के साथ कि हे भगवान उस हमेशा स्वस्थ रखना

टीवी सीरियल.....????वो सब तो खुद ही हास्य का पर्याय हैं l अक्षरा रोती है बच्चे हँसते है कभी उसके रोने के कारण को जान कर तो कभी आंसूं पोछती मेरी सासू जी को देख कर l अब हास्य पर हास्य कैसा..............

किटी पार्टी ,साड़ी ,जेवर ये सब तो बहुत ही घिसे-पिटे विषय है ...फिर किस पर लिखा जाये .....
पहले ही पड़ाव पर दिमाग का बाजा बज चुका था
पर हार कैसे मानूँ... तभी मेरे दिमाग ने, जिसने पहले भी कई बार आड़े वक्त पर परिस्थितियों को मेरे पक्ष में चतुराई से मोड़ा था , मेरा साथ दिया और चुस्ती के साथ समझाया 'अरे जाने भी दो हास्य व्यंग्य को....... कविता लिखना ही बहुत मुश्किल और टाइम टेकिंग काम है उससे ही कहाँ फुर्सत मिल पायेगी मुझे जो ये सब लिखूंगी l पता नहीं अब लाlला भाईजी भी इन बेचारे शुभ्रांशु जी की कवितायें सुनते हैं या नहीं और फिर अब तो मंच छोड़ कर भागने का भी इलज़ाम है ही इन पर, क्या पता अब इन्हें कोई बुलाएगा भी या नहीं ,किसी सम्मेलन में l
बस इसी सोच के साथ कागज और कलम और दिमाग का बोझ जल्दी से अलमारी में बंद कर, लंबी सी साँस ले सोने के लिए चल दी l

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Comment by seema agrawal on October 1, 2012 at 11:27am

शुभ्रांशु जी,

आप जिस सहजता और सरलता से हास्य लिखते हैं  पढकर मुस्कान खिल जाती है चेहरे पर और वास्तव में यही भ्रम होता है  कि यह तो बहुत आसान है ... आपके हास्य लेखन  की सफलता का आधार  भी यही है ........बिना किसी के मर्म को चोट  पहुंचाए  स्मिति के साथ सत्य का भान करा जाना आपकी खसियत लगी मुझे ....हास्य-व्यंग्य लिखना शायद सबसे मुश्किल काम है शब्दों का चुनाव ,खरी बात, निरंतरता, कथ्य को लगातार प्रवाह के साथ  इस भाँती कहना कि आम  लोग उससे  खुद को  जुड़ा  हुआ महसूस कर सकें निश्चित ही कौशल  है जो आपकी रचनाओं में भरपूर है 

//आपकी रचना को पढने के बाद संदर्भ के लिये सभी मेरी रचनाओं को पढेंगे // यह तो  उन पाठकों का ही सौभाग्य होगा जो अभी तक आपके आलेख किसी कारणवश नहीं पढ़ सके 

इसी तरह लिखते रहिये और लोगों को गुदगुदाते रहिये ...अनंत शुभकामनाएँ 

Comment by seema agrawal on October 1, 2012 at 11:17am

अजय शर्मा जी 

आप क्या कहना चाह रहे हैं मै अच्छा बुरा कुछ समझ नहीं सकी ....सम्प्रेषण में थोड़ी स्पष्टता रखेंगे तो चर्चा में आसानी होगी 

फिलहाल प्रस्तुत रचना पर आप दो बार उपस्थित हुए इसके लिए हार्दिक धन्यवाद 

Comment by seema agrawal on October 1, 2012 at 11:14am

प्रिय प्राची 

एक कोशिश थी यह .............आपके चेहरे पर थोड़ी भी मुस्कराहट आ सकी हो तो मेरे लिए यह खुशी कि बात है ,,,,,वैसे यह काम सचमुच मुश्किल है ......दिल से शुक्रिया 

Comment by ajay sharma on September 27, 2012 at 10:58pm

mera aashya hai ki wah aap logo ki chitayo ko dekh kar mujhe bhi hasya ka swad dhoda kadua laga 

Comment by ajay sharma on September 27, 2012 at 10:57pm

wah wah wah ,,,, prayaso me bhi hasya ,,,,ha ah ah aaah aaaaaahh hai haiiiii

Comment by Shubhranshu Pandey on September 27, 2012 at 7:31pm

टीवी वालों को, अखबार वालों को, रेडियो वालों को इंटरव्यू देने के चक्कर में इन्हें ये भी जरूरी नहीं लगेगा कि माँ को जेल से बाहर भी लाना है l रोज नए चैनेल्स पर इंटरव्यू देने के लिए नयी बुशर्ट -जींस खरीदने पर जो पैसे उडाये जायेंगे सो अलग l 
 
इस सुन्दर रचना के लिये आपको बहुत-बहुत बधाई, सीमाजी.  आपकी इस हास्य रचना की धरा पुख्ता है और धारा में प्रवाह है. बहाव में बहाने की बहुत बेजोड कोशिश हुई है और इसमें आप सफ़ल भी हुई हैं.
सबसे बडी बात ये कि मेरी रचनाओं को जो मान आपने दिया है मुझे ऐसा लग रहा है मानो किसी कवि को किसी सम्मेलन के लिये मनचाही फ़ीस के साथ-साथ भरा-पूरा पण्डाल भी मिल गया हो. इतना ही नहीं उस सम्मेलन का प्रसारण टीवी पर भी हो रहा हो ! बस आनंदित हो रहा हूँ ! 
आदरणीया सीमाजी,  इस मान का अभी आदी नहीं हुआ हूँ,  न ही अधिकारी ही हूँ.  अभी तो मैं ने लिखने की बस शुरुआत भर की है.  कुछ विचार बनते-बिगडते रहते हैं उसे लिखने का प्रयास भर करता हूँ.  
आपके साथ-साथ मैं उन सभी पाठकों का आभार मानता हूँ जो मेरी हास्य रचनाओं को पूरा का पूरा पढ़ते हैं और उस पर विचार भी रखते हैं. आपने तो मेरी रचनाओं को पूरी तरह से पढ़ा तो है ही, मुझे आधार बना कर इस रचना का लम्ब भी डाल दिया है !  इस विश्वास के लिये एक बार फ़िर से मैं आपके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ, आदरणीया.  

इसके साथ-साथ एक बात और है जिसके लिये में आपका सदा आभारी रहूँगा. आपकी इस हास्य रचना को पढने के बाद संदर्भ के लिये सभी जिज्ञासु पाठक मेरी रचनाओं को पढेंगे तथा उनमें चमकते चाँद के नीचे उन्हें उनकी खाली जमीन भी मिल जायेगी. 


एक बार फ़िर से आपको एक धारा-प्रवाह हास्य रचना के लिये सादर बधाई.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 27, 2012 at 7:15pm

ज़िन्दगी की व्यस्तताओं में, छोटी छोटी बातों में से हास्य को निकालना, और दूसरों को भी उसके साथ  हँसाना...आसान नहीं है.

बहुत ही सहजता से, छोटी छोटी बातों को संजो कर गुदगुदाने की कला आपकी लेखनी में, प्रवाह में, पाठक को बाँध कर हंसा रही है, इस सहज रचना हेतु हार्दिक बधाई ..
Comment by seema agrawal on September 27, 2012 at 4:58pm

क्या बात है लक्ष्मण जी आपके sense of humor का जवाब नहीं  काश!!!! आपकी इस बात को अलबेला जी सुन पाते 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 27, 2012 at 11:40am

कामवाली बाई को तो गृहणियां ही नहीं ज्यादातर घरो में गृहणियों के पतियों के मन

को भी भाती रही है, आदरणीय सीमा और राजेश जी | इस बारे में श्री अलबेला खत्रीजी

की रचना देखे जिसमे लिखा है 'अच्छी लगती है मुझको कामवाली बाइयां"

Comment by seema agrawal on September 27, 2012 at 11:14am

"हा हा हा सही बात है ना राजेश जी गृहणियों  के लिए काम वाली बाई  युगों- युगों से ही परम आदरणीय रही है  प्रस्तुति तक आने के लिए दिल से शुक्रिया 

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