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बलात 

-------

चप्पे चप्पे पर है दुशासन 
फिर मौन भला क्यों प्रशासन 
आपस में आलिंगन बद्ध 
करे किस का इन्तजार 
बलात्कार बलात्कार बलात्कार

था जिन पे हमें नाज 
आसमान लाल क्यों आज 
उड़ रहे अनगिनत बाज 
पंछी ले कैसे परवाज 
बताओ हमें इन्तजार 
बलात्कार बलात्कार बलात्कार

नन्ही कोमल सी कली 
नाज लाड़ पली बढ़ी 
नाग ने डस लिया
फंद में जकड़ लिया 
सुनाई पडी न चीत्कार 
बलात्कार बलात्कार बलात्कार

जल उठी हवस आग 
बिखर गए सारे राग
अश्रु नयन सूख गए 
बुझ गए जले दिए 
बता कहाँ करे गुहार
बलात्कार बलात्कार बलात्कार 
.
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा 

२२-१२-२०१२

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Comment

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Comment by seema agrawal on December 22, 2012 at 11:32pm

अंतर्मन के आक्रोश को उचित स्वर और शब्द दिए हैं आदरणीय प्रदीप जी ....यह इंसानियत की आवाज़ है, रुदन है कि बस अब बहुत हो चुका ...प्रस्तुति हेतु बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 22, 2012 at 7:31pm
गहरी संवेदना है रचना में सार्थक रचना के लिए बधाई 

जब तलक दुशासन रहे, प्रशासन भी मौन 

अस्मत तब तलक लूटे, न्याय करेगा कौन 
Comment by MAHIMA SHREE on December 22, 2012 at 5:59pm

चप्पे चप्पे  पर है  दुशासन 

फिर मौन भला क्यों  प्रशासन  ...

आदरणीय प्रदीप सर , सादर नमस्कार

 आपकी संवेदनाओं को नमन /


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 22, 2012 at 5:33pm

आदरणीय प्रदीपजी,  यह कविता नहीं, करोड़ों करोड़ संवेनशील मन का भेदता हुआ आक्रोश है जो आपके स्वर से निकला है. प्रति पंक्ति एक बेबस नागरिक की चीत्कार को आपने बखूबी स्वर दिये हैं. इस सामयिक रचना हेतु हार्दिक बधाई.

सादर

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