कृषक
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कृषि प्रधान भारत अपना फसलों की बहार है
भूख कुपोषण जन है मरते कैसा पालन हार है
खेत से खलिहान तक फैली जिसकी सरकार है
उसका तो बस नाम मात्र ईश्वर पालन हार है
काट रहा निश दिन अपने स्वेदाम्बू लिए माथ है
हाथ न आये लाभ उसे कछु भूख मात्र साथ है
काढ़े कर्ज उत्पादन करते सेठ भरे तिजोरी है
बच्चे उसके भूखे मरते शासन की कमजोरी है
रिकार्ड उत्पादन करते भरते अन्न का भण्डार है
अनीती की नीत बनाती अंधी ये सरकार है
घूमती कृषकाय तन ले पल पल उखड़े श्वास है
बिलख रहे बच्चे भूखे तन पे न उनके गात है
सड़ रहा अनाज बाहर दाने दाने की आस है
करेगा कोई जरूर जतन मन में ये विश्वास है
भूख गरीबी बेईमानी से न कोई रार है
झेल रही जनता कैसे कैसी ये सरकार है
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
१९-१२-२०१२
Comment
आदरणीय
किशन जी
जैसा हूँ आपके सामने हूँ.
आभार
aadarniy ashok jii
saadar abhivaadan
स्नेह हेतु आभार
कृषकों की पीड़ा को उजागर करती सुन्दर रचना आदरणीय प्रदीप जी सादर बधाई स्वीकारें.
आदरणीया सीमा जी,
सादर अभिवादन
आपने भावों को सराहा
आभार
भारत एक कृषि प्रधान देश है पर पता नहीं कब हम इसे कृषक प्रधान बनता देखेंगे कर्जे के बोझ तले दबा करता किसान शायद सरकार और समाज को नहीं दीखता ..किसान तो क्या उसकी खून-पसीने से उपजी फसल भी नहीं दिखती.... खरीदी के लिए ,भंडारण के लिए,उचित दाम देने के लिए किये गए अपर्याप्त प्रबंध सब उसके किये पर पानी फेर देते हैं ...एक संवेदनशील रचना के लिए बधाई प्रदीप जी
प्रिय अरुण जी , सस्नेह
आभार.
आदरणीय लड़ीवाला जी सादर
रचना सफल हुई आपके हस्ताक्षर पा के. आभार.
आदरणीया सुमन जी, सादर
सराहना, भाव हेतु आभार
आदरणीय गुरुदेव सौरभ जी,
सादर अभिवादन.
कलेजे को ठंडक मिली.
आभार.
आदरणीय सर वर्तमान परिस्थिति का सटीक वर्णन किया है बधाई स्वीकारें
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