खानापूरी हो चुकी, गई रसद की खेप ।
खेप गए नेता सकल, बेशर्मी भी झेंप ।
बेशर्मी भी झेंप, उचक्कों की बन आई ।
ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई ।
भूखे-प्यासे भटक, उठा दुनिया से दाना ।
लाशें रहीं लटक, हिमालय मुर्दाखाना ॥
मौलिक/ अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय / आदरणीया
बहुत ही सुन्दर भाव आदरणीय रविकर जी।हार्दिक बधाई स्वीकारें.
व्यथा, व्यवास्था को दर्शाती रचना बहुत ही सुन्दर भाव ।
देखन मे छोटी लगे गम्भीर करती घाव .... बधाई
मानवता की दुर्दशा , और सत्ता का खेल ,
दोनों आपकी कविता मे प्रतिबिम्ब हो रहा है |
पर इस विषय पर रहीम के दोहे , नही तुलसी दास की राम चरित मानस लिखनी होंगी
आप को दिल से आभार !
कुछ पंक्तिओं में ही आपने कितना-कुछ कह लिया... आपको बधाई आदरणीय रविकर जी।
सादर,
विजय निकोर
भूखे-प्यासे भटक, उठा दुनिया से दाना ।
लाशें रहीं लटक, हिमालय मुर्दाखाना ॥
और क्या दुर्दशा की पराकाष्ठा होगी,, बहुत ही उद्देलित करने वाला दृश्य चित्र खींचा आपने
बहुत बहुत बधाई आपको!!
आदरणीय रविकर सर जी उत्तराखंड की आपदा पर चली आपकी कलम अन्दर तक झकझोर गई हार्दिक बधाई स्वीकारें.
बेशर्मी भी झेंप, उचक्कों की बन आई ।
ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई ।
भूखे-प्यासे भटक, उठा दुनिया से दाना ।
लाशें रहीं लटक, हिमालय मुर्दाखाना .... गजब का का लिखा आपने आदरणीय रविकर सर ... आपदा से जो विपदा आई है और उससे से जो दुःख और साथ ही अमानवीय कृत्यों से जो क्रोधाग्नि जल रही है .. वो तीखापन और दर्द एक साथ शिदत के साथ आये है ... बहुत -२ बधाई आपको सादर
आ0 रविकर जी, ...अतिसुन्दर...कुण्डलिया। हार्दिक बधाई स्वीकारें। आ0 प्राची मैम की बात पर गौर कर लें। सादर,
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online