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अजान सुन हामिद की नींद खुली, उसे याद आया कि उसके मालिक ने आज रात वध हेतु एक गाय लाने को कहा है. हामिद मालिक से पैसे ले बाजार से गाय खरीदकर आ रहा था. रास्ते में हामिद कभी गाय को पानी पिलाता तो कभी हरी घास खिलाता । गाय को बृक्ष की छाया में बांध खुद भी आराम करने लगा .थके होने के वजह से  उसकी आँख  लग गयी. अचानक आँख खुलने पर वह घबरा कर गाय ढूंढने लगा, तभी उसकी नजर मंदिर के अहाते में गाय पर पड़ी. वह गाय को मंदिर से निकालकर ले जाना चाहता था. लेकिन मंदिर के लोग इसे नन्दी कहकर विरोध कर रहे थे. बात गाँव में आग की तरह  फ़ैल गयी. हामिद के मालिक भी अपने आदमियों के साथ मंदिर के पास पहूँचकर गाय अपने हवाले करने को कह रहे थे  . माहौल काफी तनावपूर्ण हो गया. गाय चुपचाप हामिद को देख रही थी. तभी हामिद बीच में जाकर मालिक का पैर पकड़ गिडगिडाकर कहा कि मालिक मैंने गाय खरीदी ही नहीं है. मेरे पैसे तो रास्ते में ही गिर गए थे .

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मौलिक और अप्रकाशित 
........शुभ्रा शर्मा 'शुभ ' 

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Comment by Bhawesh Rajpal on August 1, 2013 at 10:20pm

बहुत सुन्दर ! जिस प्रकार से सांप्रदायिक दंगे होने से हामिद ने बचा लिया, इससे उसकी सौहार्द्र मानसिकता का पता चलता है !

Comment by shubhra sharma on August 1, 2013 at 9:53pm

महिमा जी , सराहना हेतु धन्यवाद

Comment by MAHIMA SHREE on August 1, 2013 at 9:47pm

आदरणीया बधाई ..अच्छी कथा

Comment by shubhra sharma on August 1, 2013 at 9:38pm

आदरणीय त्रिपाठी जी , लघु-कथा के रूप में ये मेरी पहली रचना है , आपके इस उत्साह वर्धन से काफी मनोबल बढ़ा है आपको बहुत बहुत आभार

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 1, 2013 at 8:43pm
आदरणीयl शुभ्रा जी! सुन्दर लघुकथा। काश मैं भी इसे लिखने की कला जान पाता।

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