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पिला देती अगर साकी तो मैं भी बोल देता सच

१२२२   १२२२  १२२२  १२२२ 

पिला देती अगर साकी तो मैं भी बोल देता सच

हलक से गर उतर जाती तो मैं भी बोल देता सच

 

हसीं नगमे, हसीं जलवे, हसीं महफ़िल हसीनो की

हँसी रुसवा न गर होती  तो मैं भी बोल देता सच

 

कहें शायर घनी काली घटाएं इन की जुल्फों को

न उनकी नींद गर उडती  तो मैं भी बोल देता सच

 

बड़ी दिलकश हसीं कातिल चमकता चाँद सब कहते

हंसी गर सच को सह पाती तो मैं भी बोल देता सच

 

कतल होने मे गर आये मजा समझो की उल्फत है

अगर धड़कन नहीं बढ़ती तो मैं भी बोल देता सच

 

वो कातिल है छुपा बैठा जमाने की निगाहों से

मेरे दिल में वो न बसती तो मैं भी बोल देता सच

 

मौलिक व अप्रकाशित 

डॉ आशुतोष मिश्र 

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Comment by शिज्जु "शकूर" on November 22, 2013 at 8:50am

आदरणीय निलेश जी का कहना सही है आपकी ग़ज़ल में इता दोष है


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Comment by गिरिराज भंडारी on November 22, 2013 at 7:26am

आदरणीय आशुतोष भाई , बहुत सुन्दर गज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाई !!!

आदरणीय नीलेश भाई ने क़ाफिया के विषय मे सही कहा है , अभी गड-बड- है !!  ती- शब्द भी रदीफ मे शामिल् माना जयेगा !!!

सुधार के लिये आप , हाल फिल हाल ----- अगर देती ( देता )पिला साकी तो मै भी बोल देता सच  - ऐसा कर सकते हैं , ऐसे मे काफिया हो जायेगा और बाक़ी शेर भी सही रहेंगे !!! या और कुछ हल आप सोच लें , अभी गज़ल बिना काफिया के है !!!! सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 22, 2013 at 6:58am

सुंदर प्रयास हेतु बधाई ... शिज्जू  जी ने सही कहा है की साक़ी "होता" है .... लेकिन आज कल कहीं कहीं "होती" भी है तो वर्तमान परिपेक्ष्य में स्वीकार कर लेना चाहिए इस बदलाव को :) .
काफ़िया थोड़ी उलझन बढ़ा रहा है ..देती, जाती, होती में "ती" कॉमन है उसे राय्मिंग वर्ड नहीं माना जा सकता ..अत: उसके पहले वाला अक्षर देखना होगा ..यहाँ .. हो या जा में राय्मिंग तुकांतता नहीं है ... गुरु जनों से अधिक मार्गदर्शन की अपेक्षा है.   

Comment by Ayub Khan "BismiL" on November 21, 2013 at 10:15pm

Umdaa AshaaR Huye Hai Janaaab DaaD HaziR Hai 


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Comment by शिज्जु "शकूर" on November 21, 2013 at 10:02pm

जहाँ तक मेरी जानकारी कि साकी पिलाता है पिलाती नहीं है गुरूजनो से मार्गदर्शन की अपेक्षा है

शेष इस कोशिश के लिये आपको बहुत बहुत बधाई

Comment by Neeraj Nishchal on November 21, 2013 at 9:03pm

बहुत खूबसूरत खूबसूरत और बेहतरीन ग़ज़ल आदरणीय आशुतोष जी
बधाई ।

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