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नवगीत - नये साल की धूप // --सौरभ


आँखों के गमलों में
गेंदे आने को हैं
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .

ये आये तब
प्रीत पलों में जब करवट है
धुआँ भरा है अहसासों में
गुम आहट है
फिर भी देखो
एक झिझकती कोशिश तो की !
भले अधिक मत खुलना
तुम, पर
कुछ सुन जाना.. .
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .

संवादों में--
यहाँ-वहाँ की, मौसम, नारे..
निभते हैं
टेबुल-मैनर में रिश्ते सारे
रौशनदानी
कहाँ कभी एसी-कमरों में ?
बिजली गुल है,
खिड़की-पल्ले तनिक हटाना.. .
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .
 
अच्छा कहना
बुरी तुम्हें क्या बात लगी थी
अपने हिस्से
बोलो फिर क्यों ओस जमी थी ?
आँखों को तुम
और मुखर कर नम कर देना
इसी बहाने होंठ हिलें तो
सब कह जाना..
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .
*********
-- सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Saurabh Pandey on December 23, 2013 at 10:32pm

आदरणीय अखिलेश कृष्णजी, नववर्ष मंगलमय हो !
सादर

Comment by Meena Pathak on December 23, 2013 at 7:17pm

ये आये तब
प्रीत पलों में जब करवट है
धुआँ भरा है अहसासों में
गुम आहट है
फिर भी देखो
एक झिझकती कोशिश तो की !
भले अधिक मत खुलना
तुम, पर
कुछ सुन जाना.. .
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .....................बहुत सुन्दर मनभावन नवगीत, हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय सौरभ जी | सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 23, 2013 at 7:00pm

बहुत गहरे भाव रचना में | प्रराम्भ ही गहरे भाव छोड़ता हुआ - आँखों के गमले के लिये नए साल की धुप की कामना से | वाह ! बहुत सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई -

रौशनदानी
कहाँ कभी एसी-कमरों में ?
बिजली गुल है,
खिड़की-पल्ले तनिक हटाना.. .
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .------------नए साल की तनिक धुप का सुन्दर अहसास से ही मन करता है स्वागत करने को उदय होते सूर्य को |

अच्छा कहना
बुरी तुम्हें क्या बात लगी थी
अपने हिस्से
बोलो फिर क्यों ओस जमी थी ?
आँखों को तुम
और मुखर कर नम कर देना
इसी बहाने होंठ हिलें तो
सब कह जाना..
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .---------पिछले बाते सहज रूप से लेकर हमने सुखद अश्को से नाम थी आँखे | नए साल के सुनहरे सपनो 

                                      से चमक रही है अभी से आँखे  पलक पाँवड़े बिछाए नए साल का स्वागत करने को आतुर 

Comment by Saarthi Baidyanath on December 23, 2013 at 6:41pm

अब क्या कहूँ मान्यवर ...शुरुआत में ही जो बिम्ब उपस्थित किया है आपने ...ह्रदय खुश हो गया 

आँखों के गमलों में
गेंदे आने को हैं
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .......बहुत ही सुन्दर नवगीत ! सीखने को बहुत कुछ है इसमें नवोदितों के लिए ! बधाई आपको ! सादर :)

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 23, 2013 at 2:24pm

वाह सर वाह एक एक बंद खूबसूरती से लबरेज है मन को बरबस अपनी ओर खींच रहा है ये सुन्दर गीत, एक दफा पढ़ने पर जी नहीं भरता विवश हूँ कई बार पढ़ने हेतु. अत्यंत प्रभावशाली नवगीत रचा है आपने हृदयतल से ढेरों बधाइयाँ स्वीकारें.

आँखों के गमलों में
गेंदे आने को हैं .. अय हय हय किनती सुन्दर उपमा जय हो आदरणीय.

Comment by AVINASH S BAGDE on December 23, 2013 at 11:49am

"नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. ".आ! ! हा!  क्या खूब ,क्या खूब /आदरणीय इस एक पंक्ति पर ही ठिठक गया मै  तो !

बिजली गुल है,
खिड़की-पल्ले तनिक हटाना.. .अभिव्यक्ति को नमन ..

आँखों को तुम
और मुखर कर नम कर देना...शानदार नवगीत..आदरणीय सौरभ जी 
 इस बार नया साल इस नव गीत को पढने के लिए ही आएगा 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 22, 2013 at 7:34pm

आदरणीय सौरभ जी

क्या बिम्ब, क्या भाव  ? नये साल की धूप की चाहत i

इससे बेहतर स्वागत नए साल का हो ही नहीं सकता  i अजगुत है ,आदरणीय i

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on December 22, 2013 at 12:38pm
गुरुवर
शब्दों भावों और शिल्प के इष्टतम प्रयोग तो हम सब आपसे सीखते हैं। इन सब पक्षों पर अभिव्यक्ति को नमन करता हूँ।
पर प्रयास के वावजूद मैं कविता की भावभूमि पर उतर न पाया इसलिए असहाय हूँ।

अज्ञानता हेतु क्षमा प्रार्थी हूँ
Comment by कल्पना रामानी on December 22, 2013 at 9:37am

आदरणीय सौरभ जी, बहुत ही शानदार नवगीत है, संवेदनाओं से ओतप्रोत प्रेम की  गहरी भावाभिव्यक्ति सुंदरतम लगी।आपकी रचनाएँ पढ़कर मन गहराइयों में खो जाता है, अनंत में विचरने  लगता है।  आपको बहुत बहुत बधाई।

Comment by vandana on December 22, 2013 at 7:35am

अच्छा कहना
बुरी तुम्हें क्या बात लगी थी
अपने हिस्से
बोलो फिर क्यों ओस जमी थी ?
आँखों को तुम
और मुखर कर नम कर देना
इसी बहाने होंठ हिलें तो
सब कह जाना.....

बहुत सुन्दर नवगीत आदरणीय सौरभ सर 

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