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लाड़ली चली.. (अन्नपूर्णा बाजपेई)

बाबा की दहलीज लांघ चली

वो पिया के गाँव चली

बचपन बीता माँ के आंचल

सुनहरे दिन पिता का आँगन

छूटे संगी सहेली बहना भैया

मिले दुलारी को अब सईंया

मीत चुनरिया ओढ़ चली  

बाबा की ................

माँ की सीख पिता की शिक्षा

दुलार भैया का भाभी की दीक्षा

सखियों का स्नेह लाड़ बहना का

वो रूठना मनाना खेल बचपन का

भूल सब मुंह मोड चली

वो पिया के ...............

परब त्योहार हमको  बुलाना

कभी तुम न मुझको भुलाना

साजन संग मै आऊँगी

खुशियाँ संग ले आऊँगी

वो लाड़ली चली

बाबा की ..................

 

अप्रकाशित एवं मौलिक         

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Comment

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Comment by annapurna bajpai on December 24, 2013 at 4:32pm

आ0 अनुराग जी आपका हार्दिक आभार । 

Comment by annapurna bajpai on December 24, 2013 at 4:31pm

आ0 शिजू जी आपका हार्दिक आभार । 

Comment by annapurna bajpai on December 24, 2013 at 4:30pm

आ0 भण्डारी जी आपका हार्दिक आभार । 

Comment by annapurna bajpai on December 24, 2013 at 4:29pm

आदरणीय योगराज जी आपको रचना पसंद आई मै कृतार्थ हूँ , आपका हार्दिक आभार । 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 24, 2013 at 2:59pm

बहुत भावपूर्ण काव्यकृति है आ० अन्नपूर्णा जी जिसे पढ़ने के बाद विदाई का दृश्य आँखों के सामने नमूदार हो जाता है, सादर बधाई स्वीकारें।

Comment by Shyam Narain Verma on December 24, 2013 at 1:14pm
सुंदर गीत के लिए बधाई ..........
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 24, 2013 at 12:10pm

अन्नपूर्ण जी

करुना का सही स्पर्श कवयित्रियो  की रचनाओ ही मिलता है i आपको बहुत बहुत बधाई i

Comment by anurag trivedi ehsaas on December 24, 2013 at 10:40am
भावपूर्ण अभिव्यक्ती ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 23, 2013 at 8:41pm

आदरणीय अन्नपूर्णाजी बेहतरीन गीत है दिली दाद कुबूल करें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2013 at 8:38pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी , बहुत मार्मिक , भाव पूर्ण रचना की है आपने । अनेकों बधाइयाँ ॥

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