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हर पतझड़ को ……

ज़िंदगी को ..हर मौसम की जरूरत होती है
उजालों को भी ...अंधेरों की जरूरत होती है

क्यों सिमटे नहीं सिमटते वो बेदर्द से लम्हे
चश्मे अश्क को .खल्वत की ज़रुरत होती है

रात के वाद-ऐ-फ़र्दा पे ..यकीं भला करूँ कैसे
यकीं को भी इक समर्पण की जरूरत होती है

मिट गयी सहर होते ही वो रूदाद-ऐ-मुहब्बत
रूहे- मुहब्बत को आगोश की जरूरत होती है

हिज़्र की सिसकियों से है नम रात का दामन
सोहबते -लब को तिश्नगी की जरूरत होती है

कुछ जल जाएंगे कुछ ...अध जले रह जाएंगे
जुगनू से ख्वाब को ..रात की जरूरत होती है

कितने ही राज़ दफन हैं .इक रात के सीने में
हर पतझड़ को .इक बहार की जरूरत होती है

सुशील सरना

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on May 21, 2014 at 5:51pm

आदरणीय मीना पाठक   जी रचना पर आपकी मधुर प्रतिक्रिया  का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on May 21, 2014 at 5:50pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव  जी रचना पर आपकी आत्मीय  प्रशंसा का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on May 21, 2014 at 5:48pm

आदरणीय अरुण कुमार निगम जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on May 21, 2014 at 5:48pm

आदरणीय कुंती मुख़र्जी  जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on May 21, 2014 at 5:47pm

आदरणीय शिज्जु शकूर जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार 

Comment by Meena Pathak on May 21, 2014 at 12:00pm

बेहतरीन रचना ... बहुत बहुत बधाई | सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 21, 2014 at 11:33am

हिज्र की सिसकियों से  है नम रात का दामन ----

बहुत खूब --- बधाई हो  i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 21, 2014 at 10:08am

आदरणीय सुशील जी , सुन्दर भाव पिरोये हैं. सुन्दर रचना..............

Comment by coontee mukerji on May 20, 2014 at 7:49pm

ज़िंदगी को ..हर मौसम की जरूरत होती है
उजालों को भी ...अंधेरों की जरूरत होती है......बहुत सुंदर....सरना जी आपको बहुत बहुत बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 20, 2014 at 7:46pm

आदरणीय सुशील सर बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति के लिये हार्दिक बधाई

कृपया ध्यान दे...

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