For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-निलेश "नूर"-न कोई कशिश है न कोई में ख़ला है

१२२/१२२/१२२/१२२
.
न कोई कशिश है न कोई ख़ला है,
ये दिल बावला था ये दिल बावला है.
.

गुनहगार ग़ैरों को क्यूँ कर कहें हम,
वो थे लोग अपने जिन्होंने छला है.   
.

टटोला कई बार ख़ुद को तो पाया, 
जहाँ धडकने थीं वहाँ आबला है.....  आबला- छाला 
.

चढ़ा था नज़र में, जिगर तक न पहुँचा,
नज़र से जिगर तक बड़ा फ़ासला है.         
.

उठाऊंगा मुद्दा क़यामत के दिन ये,
मेरे हक़ का हर फ़ैसला क्यूँ टला है.  

.

समझना है मुश्किल हुआ क्या अचानक,
यहाँ जिस्म रख कर किधर वो चला है.
.

जिसे ले गए सब, वो था ‘नूर’ जैसा,
कोई तो बताए कि क्या मामला है.   
.
निलेश "नूर"
मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 667

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 15, 2014 at 4:55pm

आदरणीय नूर जी ..कई बार पढ़ा बहुत लुत्फ़ आया ..चढ़ा था नज़र में, जिगर तक न पहुँचा, 
नज़र से जिगर तक बड़ा फ़ासला है.         
.ये शेर दूरियां तय करके जिगर तक पहुंचा है ..इस शानदार रचना पर हार्दिक बधाई सादर 

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on July 15, 2014 at 10:54am
बस जुबाँ पे आते ही ग़ज़ल गुनगुनाने लगी। वाह्ह्ह
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 14, 2014 at 8:31pm

गुनहगार ग़ैरों को क्यूँ कर कहें हम, 
वो थे लोग अपने जिन्होंने छला है.   ..बहुत खूब आदरणीय निलेश जी!

Comment by hemant sharma on July 13, 2014 at 2:26pm
Bahut hi sundar gazal aadarniy nileshji
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 13, 2014 at 9:57am

टटोला कई बार ख़ुद को तो पाया, 
जहाँ धडकने थीं वहाँ आबला है..... ...........दिल को छूओ गया, दिली बधाई आपको आदरणीय निलेश जी
.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 12, 2014 at 4:26pm

आदरनीय नीलेश भाई , उम्दा ग़ज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें॥

चढ़ा था नज़र में, जिगर तक न पहुँचा,
नज़र से जिगर तक बड़ा फ़ासला है.    -  बहुत खूब भाई , बधाई ॥

आदरणीय , शीर्षक  मे , में लफ्ज़ अधिक लिखा गया है  , निकाल दीजियेगा ॥

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 12, 2014 at 11:38am

बहुत  बहुत शुक्रिया आ. डॉ. गोपाल नारायण जी ..

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 12, 2014 at 11:04am

समझना है मुश्किल हुआ क्या अचानक,
यहाँ जिस्म रख कर किधर वो चला है

नूर भाई ---- यह आपकी एक और बेहतरीन प्रस्तुति है i  बधाई हो i

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 11, 2014 at 7:35pm

शुक्रिया आ. गुमनाम पिथौरागढ़ी साहब ..

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 11, 2014 at 4:34pm

टटोला कई बार ख़ुद को तो पाया, 
जहाँ धडकने थीं वहाँ आबला है.

समझना है मुश्किल हुआ क्या अचानक,
यहाँ जिस्म रख कर किधर वो चला है.

waah sir ji khoob kamaal gazal hui hai badhai ............................

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गया मानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१। अच्छा शेर हुआ। तम से घिरे थे…"
13 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"किस को बताऊँ दोस्त  मैं क्या याद आ गया ये   ज़िन्दगी  फ़ज़ूल …"
30 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"जी ज़रूर धन्यवाद! क़स्बा ए शाम ए धुँध को  "क़स्बा ए सुब्ह ए धुँध" कर लूँ तो कैसा हो…"
53 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया। अच्छा मतला हुआ। ‘सुनते…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
" आ. महेन्द्र कुमार जी, 1." हमदर्द सारे झूठे यहाँ धोखे बाज हैं"  आप सही कह रहे…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय,  दयावान जी मेधानी, कृपया ध्यान दें कि 1. " ये ज़िन्दगी फ़ज़ूल,  वाक्यांश है,…"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"कोई बात नहीं आदरणीय विकास जी। अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें। वह ज़्यादा ज़रूरी है। "
2 hours ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हार्दिक आभार आपका महेंद्र कुमार जी। हाल ही में आंख का ऑपरेशन हुआ है। अभी स्क्रीन पर ज़ियादा समय नहीं…"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"अब बेहतर है। बस जगमगाती को जगमगाते कर लें। "
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय mahendra kumar जी सादर अभिवादन बहुत धन्यवाद आपका आपने वक़्त निकाला ग़ज़ल तक आए उसे सराहा बहुत…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। गजल पर आपकी उपस्थिति व स्नेह के लिए आभार। आपके सुझाव उत्तम हैं।…"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"दिल से आभारी हूँ आदरणीय दयाराम जी. बहुत शुक्रिया. "
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service