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हर सम्त आस पास गुलिस्तान बन गये- ग़ज़ल

221 2121 1221 212

हर सम्त आस पास गुलिस्तान बन गये

ये माहो शम्स गुल मेरी पहचान बन गये

 

जो लोग शह्र फूँक के नादान बन गये

बदकिस्मती से आज निगहबान  बन गये

 

आँखों में धूल झोंक के लोगों की देख लो

मतलब परस्त मुल्क के सुल्तान बन गये

 

चमके तो मेह्र बन गये जो आसमान की

वो आँखों में उतरते ही अरमान बन गये

 

जिनकी ज़बाँ उगलती रही ज़ह्र अब तलक

कैसे ये मान लूँ कि वो इंसान बन गये

 

सूरत बदल गई कि निगाहें मेरी “शकूर”

आईने देख कर मुझे अंजान बन गये

 

-मौलिक व अप्रकाशित

 

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Comment by शिज्जु "शकूर" on September 26, 2014 at 6:11am

आदरणीया राजेश दीदी रचना की सराहना से हौसला बढ़ा है आपका तहे दिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 26, 2014 at 6:09am

आदरणीय गिरिराज सर आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 26, 2014 at 6:09am

आदरणीय गोपाल नारायण सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने रचना को मान दिया।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 26, 2014 at 4:28am

आदरणीय शिज्जू जी ..क्या कमाल की ग़ज़ल हुई है हर शेर उम्दा है 

चमके तो मेह्र बन गये जो आसमान की...ये शेर बहुत भाया .पर अपने जानकारी के लिए पूँछ रहा हूँ इस लाइन में मेह्र की बजह से मात्रा की गड़ना में असुबिधा हो रही है कृपा कर इस पर थोडा प्रकाश डालें ..एक बार पुनः आपको ढेर सारी बधाई के साथ सादर 

Comment by harivallabh sharma on September 25, 2014 at 11:28pm

बहुत सुन्दर,,

चमके तो मेह्र बन गये जो आसमान की

वो आँखों में उतरते ही अरमान बन गये

लाजबाब ग़ज़ल ..सभी शेर अति सुन्दर...बधाई आपको जनाब शिज्जू शकूर साहब.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 25, 2014 at 11:04pm

आँखों में धूल झोंक के लोगों की देख लो

मतलब परस्त मुल्क के सुल्तान बन गये.......बहुत खूब!  विशेष बधाई इस शे 'र पर स्वीकारें आदरणीय शिज्जु जी

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 25, 2014 at 9:04pm
बहुत अच्छी ग़ज़ल बानी है आदरणीय शिज्जु शकूर जी , बधाई .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 25, 2014 at 4:58pm

चमके तो मेह्र बन गये जो आसमान की

वो आँखों में उतरते ही अरमान बन गये

 

जिनकी ज़बाँ उगलती रही ज़ह्र अब तलक

कैसे ये मान लूँ कि वो इंसान बन गये

 ये दोनों शेर तो कमाल के हुए ,मक्ता भी शानदार ,बहुत बहुत दाद कबूलिये शिज्जू भैया 


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Comment by गिरिराज भंडारी on September 25, 2014 at 12:24pm

जिनकी ज़बाँ उगलती रही ज़ह्र अब तलक

कैसे ये मान लूँ कि वो इंसान बन गये

 

सूरत बदल गई कि निगाहें मेरी “शकूर”

आईने देख कर मुझे अंजान बन गये

 आदरणीय शिज्जू भाई , पूरी ग़ज़ल लाजवाब कही है , दिली मुबारक बाद | इन दो आशा आर के लिए बहुत बधाई |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 25, 2014 at 11:52am

आदरणीय शकूर जी

बेहतरीन गजल  i  मक्ता  लाजवाब i  आपको बधाई  i सादर i

कृपया ध्यान दे...

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