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ग़ज़ल - इससे बढ़कर कोई अनर्गल क्या ? // --सौरभ

२१२२  १२१२  २२

इससे बढ़कर कोई अनर्गल क्या ?
पूछिये निर्झरों से - "अविरल क्या ?"

घुल रहा है वजूद तिल-तिल कर
हो रहा है हमें ये अव्वल क्या ?

गीत ग़ज़लें रुबाइयाँ.. मेरी ?
बस तुम्हें पढ़ रहा हूँ, कौशल क्या ?

अब उठो.. चढ़ गया है दिन कितना..
टाट लगने लगा है मखमल क्या !

मित्रता है अगर सरोवर से
छोड़िये सोचते हैं बादल क्या !

अब नये-से-नये ठिकाने हैं..
राजधानी चलें !.. ये चंबल क्या ?

चुप न रह.. बोल तो.. अब आईने.. !
बोल, मुझसा कोई है विह्वल क्या ?
****************
-सौरभ
****************
(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Pawan Kumar on October 31, 2014 at 10:01am

पढ कर मजा आ गया
बहुत से अच्छे अच्छे शब्द सीखने को मिलें
आदरणीय , सादर बधाई!


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 31, 2014 at 9:43am

आ० सौरभ भाई जी, बात अब शीशे की तरह साफ़ ही, सादर आभार।
वैसे "अव्वल" की जगह "पल पल" कैसा रहता ? "तिल तिल" के बाद "पल पल" क्या एक अलग ही ख़ूबसूरती पैदा न कर देता ?


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 31, 2014 at 12:45am

अपनी किसी ग़ज़ल पर आपसे अरसे बाद दाद मिली है. आपका स्वागत है भाई बैद्यनाथजी.
सहयोग बनाये रखिये.
शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 31, 2014 at 12:43am

प्रस्तुत ग़ज़ल पर आपसे मिली प्रतिक्रिया मेरे लिए थाती है आदरणीय विजय निकोर साहब..

हृदय से आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 31, 2014 at 12:42am

आदरणीय विजय शंकर साहब, आपकी सदाशयता के लिए मैं हार्दिक रूप से आभारी हूँ. आपने रचना को मान दे कर मुझे और सुप्रेरित किया है.
सादर आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 31, 2014 at 12:40am

भाई नीरज नीर जी, आपकी प्रतिक्रिया ने मुझे रचनाकर्म के प्रति और उत्साहित किया है.
हार्दिक धन्यवाद भाईजी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 31, 2014 at 12:39am

आदरणीया प्राचीजी, शेरों पर मनभावन प्रतिक्रिया के लिए सादर धन्यवाद. आपसे मिली प्रशंसा रचनाकर्म के प्रति और उत्साहित करती है.
शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 31, 2014 at 12:37am

भाई अतुल कुशवाहाजी, आपसे मिली दाद को हृदय से स्वीकार रहा हूँ.
शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 31, 2014 at 12:37am

आदरणीय सत्यनारायणजी, आपसे मिले प्रोत्साहन से प्रयास सार्थक लगने लगता है.
सादर आभार आदरणीय.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 31, 2014 at 12:30am

आदरणीय योगराजभाईजी, शेर-दर-शेर हुई प्रतिक्रिया ने मेरे उत्साह को बहुगुणा कर दिया है. सादर आभार..

अव्वल वाले प्रयोग पर अपना निवेदन है, कि, हम बोलचाल में अक्सर इस शब्द का यों प्रयोग करते हैं. जैसे,
"बताइये, अव्वल हुआ क्या वहाँ !"
या,
"जो कर दिये, सो तो ठीक है, अव्वल ये बताओ कि ऐसी बात दिमाग़ में आयी कैसे ?"  
इसी लहजे का प्रयोग किया है हमने उस शेर में, कि, (चलिये अपना) वजूद तो तिल-तिल कर घुलता जा रहा है.. (सो ठीक है) .. कोई ये तो बताए अव्वल कि मुझे हुआ क्या है (कि, वजूद यों तिल-तिल कर घुलता जा रहा है.. या, ऐसा हो रहा है..)  

आपको ग़ज़ल प्रभावी लगी, आपने इस् ग़ज़ल को अनुमोदित किया, इस हेतु हृदय की गहराइयों से पुनः हार्दिक आभार.
सादर

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