For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उसने खौला लिया था सूरज एक चम्मच चीनी के साथ
वह जीवन के कडुवे अंधेरों में कुछ मिठास घोलना चाहता था 
उसके दिन के उजाले चाय के कप में डूबे हुए थे 
और उसका सूरज
ताजगी देता हुआ जीवन की उष्मा से भरपूर
गर्म शिप बनकर उतर आता था लोगों की जिव्हा पर 
.
उसकी केतली घुमती थी बाजार भर 
और वह पहाड़ की ओट के ढालान पर
सर्दी में भी 
दिन की ठंडी छाया में 
शीतल सरसराती हवाओं में ठिठुरता हुआ
छोटे कांच के गिलास में
उड़ेल कर 
गर्मी और जायके का व्यापार करता था ....... 

.
नहीं जानता था वह ग्रीन टी 
न चाय निम्बू की 
पुश्तों से जाना था 
ब्रुक बांड टी और गाढ़ा भैंस का दूध 
जो दुह कर मुंह सवेरे वह निकल पड़ता था
उसकी चाय का कुछ ख़ास स्वाद होता था|
...
कुछ थकेहारे लम्बे सफ़र के 
ट्रक चालक 
उन गिलासों के साथ अपनी थकान वहीँ छोड़ जाते थे
वह तुरंत पलट कर धो देता था गिलास 
पानी से धोते हुए जम जाते थे उसके हाथ
आखिर पानी बाँझ की जड़ों का रिसता जल था 
पहाड़ का सबसे स्वादिष्ट सबसे ठंडा तरल 


और वह रात को बाजार की आखिरी बंद होती दूकान के बाद 
अपनी चादर पटरा समेटता था 
कुछ बर्तन हाथ में और होता था कंधें में एक झोला
दूर से टकटकी लगाये उसका बाट जोहती चार जोड़ी निगाहें
और उस दिशा में उकाल पर चढ़ता 
वह धौकनी होती अपनी फूलती साँसों की परवाह न करता
.
आखिरी धार पर मिट्टी की झोपडी 
कि घर के भीतर घुसते ही 
उसके कंधे के झोले की ओर 
प्रश्नवाचक उत्सुक निगाहें 
झोले के बंद रहस्य में छिपे 
बहुरंगी खुशियों को घेर लेती

वह झोला खोल देता 
और 
बरबस उन निगाहों में 
चमक उतर आती ...... 
कितने ही सूरज उसके घर उस वक्त जगमगा उठते| 
तब उस रात के अँधेरे में

वह खुशियों से भरा

एक गुनगुना दिन जोड़ लेता | ...

.

 मौलिक अप्रकाशित

Views: 915

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on November 7, 2014 at 10:55pm
आदरणीया, नूतन बिम्बों का सुन्दर प्रयोग, बधाई........
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 7, 2014 at 7:32pm

आदरणीया नूतन जी

नए प्रतीक और बिम्बों से सजी इस कविता में  आपका कौशल छिपा है i  बहुत सुन्दर और स्तरीय रचना i

कितने ही सूरज उसके घर उस वक्त जगमगा उठते| 
तब उस रात के अँधेरे में

वह खुशियों से भरा

एक गुनगुना दिन जोड़ लेता | ...

.

Comment by pooja yadav on November 7, 2014 at 7:06pm
Mahodaya. .Bahut hi kamaal ka shabd sanyojan h aapka. . .saadar
Comment by Mohinder Kumar on November 7, 2014 at 3:51pm
कविता का सुखांत उस सारी पीडा को भुला देता है जो कविता पढते हुये उस व्यक्ति विशेष के प्रति उपजती है. न जाने कितनी जोडी आँखेँ इस देश मेँ इसी तरह टकटकी लगाये किसी अपने के लिये प्रतीक्षारत रहती हैँ.

भावभरी कविता के लिये आभार.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 7, 2014 at 1:10pm
अद्भुत संप्रेषण ! अरसे बाद आपकी एक सधी हुई इतनी भावमयी रचना पढ़ रहा हूँ.
मैं इत्मिनान से इस रचना फिर आऊँगा, आदरणीया नूतनजी.
तब तक इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद
Comment by Shyam Narain Verma on November 7, 2014 at 12:16pm

बहुत ही मार्मिक भावाभिव्यक्ति.............हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service