आभास हो तुम ........
आभास हो तुम विश्वास नहीं हो
तुम रूठी तृप्ति की प्यास नहीं हो
जिन मधु पलों को मौन भी तरसे
तुम उस पूर्णता का प्रयास नहीं हो
आभास हो तुम विश्वास नहीं हो
तुम रूठी तृप्ति की प्यास नहीं हो .........
अतृप्त कामनाओं के स्वप्न नीड़ हो
अभिलाष कलश के विरह नीर हो
जिस प्रकाश को तिमिर भी तरसे
तुम उस जुगनू का प्रकाश नहीं हो
आभास हो तुम विश्वास नहीं हो
तुम रूठी तृप्ति की प्यास नहीं हो ......
पथिक हो तुम निर्जीव राह के
शूलों से आहत पुष्प आह के
प्रतिपल घटती तुम देह छवि हो
तुम जीवन का मधुमास नहीं हो
आभास हो तुम विश्वास नहीं हो
तुम रूठी तृप्ति की प्यास नहीं हो .....
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ,हार्दिक बधाई श्री सुशील सरना जी !
आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी गीत पर आपकी ऊर्जावान प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Shyam Narain Verma जी गीत पर आपकी मधुर प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Neeraj Kumar 'Neer' जी गीत पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। टंकण त्रुटि की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए धन्यवाद। मैंने वो त्रुटि ठीक कर ली है। पुनः आपका आभार।
विमुग्धकारी
जिन मधु पलों को मौन भी तरसे
तुम उस पूर्णता का प्रयास नहीं हो
बहुत सुन्दर मनमुग्ध करता गीत ...बहुत बहुत बधाई आपको |
बौट सुंदर प्रस्तुति... एक जगह शायद आहात में टायपिंग की गलती लगती है ।
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