For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

‘पता चला है सेठ से तुम्हारे पुराने सम्बन्ध थे ?’- इंस्पेक्टर ने कड़क कर पूंछा I

‘जी हाँ ----I’

‘कैसे सम्बन्ध थे ?’

‘एक समय मै रखैल थी उसकी I’

‘तब तूने उसकी हत्या क्यों की ?’

‘क्योंकि वह मनुष्य नहीं राक्षस था I वह मेरी बेटी को भी अपनी हवस का शिकार बनाने जा रहा था I मैंने साले को वही चाकू से गोद दिया I’

‘तो तेरी बेटी क्या सती सावित्री थी ?’

‘नहीं साहिब , हम जैसे लोग पेट के लिए देह बेचते है I सती -सावित्री होना हमारे लिये गाली है पर मैंने उस मुंहजले को सारी सच्चाई तो पहले ही बता दी थी, फिर  उस पर शैतान क्यों सवार हो गया !’

‘कैसी सच्चाई ?’

‘यही कि  वह सेठ ही मेरी लडकी का बाप था I’

(मौलिक व् अप्रकाशित )

Views: 777

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 12, 2015 at 7:30pm

आदरणीय दादा शरदिंदु जी

आपका स्नेह ही मेरा पाथेय है i सादर i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on February 3, 2015 at 5:31pm
अचम्भित होना पड़ता है ऐसी रचना पढ़कर. सबसे अलग विद्वता की छाप सुस्पष्ट है आदरणीय.
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 14, 2015 at 11:22am

आ 0 अनुज

आपका हृदय से आभार i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 14, 2015 at 10:05am

नेआदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , क्या कहूँ ? आदरणीय सौरभ भाई जी ने सही कहा है , अंतिम पंच लाइन पढ के सच मे दिमाग मे सन्नाटा छा गया । समाज का एक काला पक्ष ये भी है ! लघु कथा के लिये आपको हार्दिक बधाई ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 13, 2015 at 5:40pm

आ 0 सौरभ जी

आपका हार्दिक आभार i  त्रुटि का परिमार्जन लाजिमी है i सादर i


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 13, 2015 at 5:35pm

ओह !  क्या कहा जाय ? समाज का यह पक्ष मात्र स्याह ही नहीं बल्कि दाँतुल भी है ! पशुवत !

प्रस्तुति के कथ्य पर क्या कहूँ ? दिमाग़ सुन्न है. 

एक बात :

यही की की जगह यही कि होना चाहिये.

ऐसी प्रस्ततियों की पंच लाइनें व्याकरण के तौर पर बेदाग़ हों तो उनका प्रभाव अत्यंत गहन हुआ करता है. 

सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 13, 2015 at 5:11pm

लडीवाला जी

आपका सादर आभार i

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 12, 2015 at 4:19pm

हवस से बड़ा कोई नशा नहीं जिसमे डूबा आदमी को किसी  रिश्तें का खयाल नहीं रहता | बहुत सुंदर लघु कथा  के लिए बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 12, 2015 at 4:14pm

जीतू भाई

आपका स्नेह जिंदाबाद i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 12, 2015 at 4:13pm

खैराबादी जी

अति कृतज्ञ हूँ i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
27 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ हर बरस हर नगर में होता, अरबों का व्यापार।         …"
35 minutes ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  ______ जगमग दीपों वाला उत्सव,उत्साहित बाजार। जेब सोच में पड़ी हुई है,कैसे पाऊँ…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"चार पदों का छंद अनोखा, और चरण हैं आठ  चौपाई औ’ दोहा की है, मिली जुली यह ठाठ  विषम…"
11 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद * बम बन्दूकें और तमंचे, बिना छिड़े ही वार। आए  लेने  नन्हे-मुन्ने,…"
20 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
" प्रात: वंदन,  आदरणीय  !"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद : रौनक  लौट बाजार आयी, जी   एस   टी  भरमार । वस्तुएं …"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम..."
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Oct 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Oct 13

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service