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ग़ज़ल --२१२२--२१२२--२१२ समझा चलो

२१२२--२१२२--२१२

आपके किरदार को समझा चलो

नाग की फुफकार को समझा चलो

 

हार कर संसार से हर दौड़ में

वक़्त की रफ़्तार को समझा चलो

 

मोल कुछ पाया नहीं अख़्लाक़ का

ख़ुद ग़रज़ बाज़ार को समझा चलो

 

कहता है कोई शिफ़ा मेरी नहीं

वो मेरे आज़ार को समझा चलो

 

सर गँवा कर भी बचा ली आबरू

क़ीमती दस्तार को समझा चलो

 

दोस्त था लेकिन अदू से जा मिला

मैं भी इक अय्यार को समझा चलो

 

ख़ामोशी इनकार भी इक़रार भी 

वो मेरे इज़हार को समझा चलो

 

आजकल गाता है वो रोता नहीं

दर्द की झंकार को समझा चलो

 

देखकर इक दीप को ‘खुरशीद’ भी

तीरगी के भार को समझा चलो

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Madan Mohan saxena on January 12, 2015 at 3:13pm

बेहद उम्दा

ख़ामोशी इनकार भी, इक़रार भी
वो मेरे इज़हार को समझा चलो.

Comment by somesh kumar on January 12, 2015 at 9:56am

ख़ामोशी इनकार भी इक़रार भी 

वो मेरे इज़हार को समझा चलो

सारी गज़ल अच्छी लगी और ये अश आर कुछ खास |

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 12, 2015 at 8:50am

बेहद उम्दा ग़ज़ल 

ख़ामोशी इनकार भी, इक़रार भी 

वो मेरे इज़हार को समझा चलो.... वाह्ह्ह .. कमाल का अशआर 

 

आजकल गाता है वो रोता नहीं

दर्द की झंकार को समझा चलो.... बेहद उम्दा 

बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिल से दाद कुबूल फरमाएं 

Comment by vandana on January 12, 2015 at 6:04am

मोल कुछ पाया नहीं अख़्लाक़ का

ख़ुद ग़रज़ बाज़ार को समझा चलो

 

कहता है कोई शिफ़ा मेरी नहीं

वो मेरे आज़ार को समझा चलो

 

सर गँवा कर भी बचा ली आबरू

क़ीमती दस्तार को समझा चलो

देखकर इक दीप को ‘खुरशीद’ भी

तीरगी के भार को समझा चलो

बहुत शानदार ग़ज़ल आदरणीय 

Comment by gumnaam pithoragarhi on January 11, 2015 at 10:51pm
सर गँवा कर भी बचा ली आबरू

क़ीमती दस्तार को समझा चलो

आजकल गाता है वो रोता नहीं

दर्द की झंकार को समझा चलो

वाह खूब अच्छी ग़ज़ल वाह

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