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सोचता हूँ मैं ,तुम कौन हो ?

सोचता हूँ मैं ,तुम कौन हो ?

 

सखी हो ,ईश्वर हो,

तुम मेरा प्यार हो,

तुम मेरा संसार हो !

 

करुणा हो, दुलार हो,

प्रेम की पुकार हो ,

तुम जीवन-आधार हो !

 

जीवन हो, स्पन्दन हो,

साँसों का गुंजन हो ,

तुम मेरा चिंतन हो !

 

हिम्मत हो जोश हो,

शक्ति का श्रोत हो,

प्रेम से ओत-प्रोत हो !

 

गगन हो , सर्जन हो,

सृष्टी का वरदान हो,

तुम मेरा अभिमान हो !

 

सरल हो , सुबोध हो,

स्पष्टता का बोध हो,

जीवन का अनुरोध हो !

 

सर्दी की धूप हो,

गर्मी की छावं हो,

अपना वाला गाँव हो !

 

तुम मेरा मृदुभाव हो

तुम मेरा स्वभाव हो

तुम मेरा प्रभाव हो !

 

तुम मैं हूँ , मैं तुम हो !!

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

 

 

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Comment

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 20, 2015 at 3:33pm

बहुत सुन्दर कथ्य और प्रवाह युक्त कविता पर ढेरों बधाईयाँ आदरणीय हरिप्रकाश जी.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 20, 2015 at 12:13pm

हरि प्रकाश जी

स्वयं को अनूठे ढंग से आपने रूपायित किया है i  आपको बधाई i

Comment by ajay sharma on January 19, 2015 at 10:58pm

wah wah wah aur kya kah sakta hoo .............


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 19, 2015 at 10:58pm
आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी बेहतरीन प्रस्तुति बधाई
Comment by Hari Prakash Dubey on January 19, 2015 at 9:28pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर , रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया मिल जाती है तो लगता है आशीर्वाद मिल गया है !  सादर धन्यवाद ! 

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 19, 2015 at 9:21pm
सर्दी की धूप हो,
गर्मी की छावं हो,
अपना वाला गाँव हो !

सोचता हूँ , तुम कौन हो, बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति,
बधाई, आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी , सादर।

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