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"अरे!!  तुम्हारे जैसे गरीब अनाथ के झोपड़े में महात्मा गाँधी की तस्वीर...”

 

“हाँ! साहब,  अभी कुछ दिन पहले ही लोगों ने चौराहे पर इस तस्वीर को लगाकर.. मालायें पहनाई, खूब  जोर-शोर से भाषण-बाजी की. फिर इसे सब,  वहीं छोड़कर चले गये.. ये वहां बे-सहारा थे,  तो इन्हें अपने घर ले आया...”

 

 

     जितेन्द्र पस्टारिया

 

 (मौलिक व् अप्रकाशित)   

 

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 26, 2015 at 7:33pm

रचना पर आपकी स्नेहिल सराहना से ख़ुशी मिलती है आदरणीय सोमेश भाई जी

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 26, 2015 at 7:31pm

आदरणीय मिथलेश सर जी, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ. स्नेह बनाए रखियेगा.. सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 26, 2015 at 11:27am

आदरणीय जितेन्द्र भाई , आ. शिज्जु भाई जी की बात से मै भी सहमत हूँ , आज कल महापुरुषों के सिद्धांतों पर चलने के बजाये उन्हे  अपने स्वार्थ सिद्धि का माध्यम बनाया जा रहा है ! आपके कथा जुछ इसी बात का इशारा कर रही है ! आपको इस सामाजिक कटाक्ष के लिए बधाई ।

Comment by Hari Prakash Dubey on January 26, 2015 at 11:13am

आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया सर, अपने सन्देश को संप्रेषित  करती प्रभावशील लघु कथा ,हार्दिक बधाई !

Comment by kanta roy on January 26, 2015 at 8:21am
महात्मा गाँधी जी अब सिर्फ फोटो और नोटों में ही सिमट कर रह गये है । जन जन के अंतर में वास करने वाले गाँधी जी के सिद्धांत अब किताबों में छपी हुई महज एक पंक्ति के सिवा कुछ ना रहा । नैतिक पतन के दौर में सम्मान महज एक दिखावा बनकर रह गया है । अर्थपूर्ण कथा के लिए बधाई आ.जितेन्द्र पस्टारिया जी आपको ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 26, 2015 at 8:05am

कटु मगर सत्य जिस व्यक्ति ने अपना जीवन दूसरों को समर्पित कर दिया लोग अब उनके सिद्धांतों पर चलने के बजाये उनके नाम पर स्वार्थ साधने में लगे हैं। आदरणीय जितेन्द्र जी बहुत बहुत बधाई इस लघुकथा के लिये

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on January 25, 2015 at 10:09pm
ये वहां बे-सहारा थे, तो इन्हें अपने घर ले आया..
समाज पर सुन्दर कटाक्ष करती रचना। बधाई आदरणीय जितेन्द्र पस्टारियारियाजी
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 25, 2015 at 7:46pm
सही प्रस्तुति, अच्छे लोग, अच्छे विचार, सबसे अधिक बेसहारा हैं ,
बधाई , प्रिय जीतेन्द्र जी , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 25, 2015 at 5:35pm

बहुत सुन्दर प्रभावशील लघु कथा ,हार्दिक बधाई जीतेन्द्र भैय्या.  

Comment by विनोद खनगवाल on January 25, 2015 at 5:19pm
आदरणीय जितेंद्र पस्टारिया जी। ये तस्वीर की दुर्गती नहीं बल्कि गांधी जी के विचारों की भी तौहीन है। बहुत बढिया लघुकथा।

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