For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

परिवर्तन - (अतुकांत): गिरिराज भंडारी

परिवर्तन

*******

 

बून्द की नाराजगी का संज्ञान

सागर ले ही

ज़रूरी नहीं

फिर भी नाराजगी बून्द की अपनी स्वतंत्रता है

प्रकृति प्रदत्त

 

संज्ञान अगर सागर ले भी ले तो

खुद में कोई परिवर्तन भी करे ये नितांत ज़रूरी नहीं  

वैसे हर नाराजगी कोई परिर्वतन ही चाहती हो किसी में

ये भी ज़रूरी नहीं

 

कुछ नाराजगी व्यवहारिक खानापूर्तियाँ भी होतीं है

कुछ स्वांतः सुखाय

अपने ज़िन्दा होने के सबूत के बतौर

 

वैसे तो जीवंतता का एक अहम तत्व है

परिवर्तन

अब, औरों में नहीं

तो ख़ुद में सही 

*************** 

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 731

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 26, 2015 at 1:18pm

गुस्ताखी की माफ़ी तो मुझे दोनों से चाहिए होगी आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर से भी और आदरणीय गिरिराज सर से भी 

Comment by Hari Prakash Dubey on January 26, 2015 at 1:14pm

गुरुदेव आदरणीय गोपाल सर , सही कहा आपने , वैसे  " द्रश्य का दृष्टा पर प्रभाव पड़ता है " संगत का असर है ..हा हा ..गुस्ताखी माफ़ ! सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 26, 2015 at 1:06pm

हा हा हा..... क्या खूब कहा आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर .... ग़ज़लोंई करते करते आदरणीय गिरिराज सर अचानक दर्शन की गहराइयों में जाने लगे है. एक अतुकांत कविता आपसी ताप से जलती टहनियाँ / इसके बाद की कविता मै कभी नहीं मरता / और अब ये कविता परिवर्तन 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 26, 2015 at 12:53pm

मित्र

आप दार्शनिक होते जा रहे हैं i इस सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई i

Comment by Hari Prakash Dubey on January 26, 2015 at 11:15am

आदरणीय गिरिराज सर सुन्दर रचना ....

परिवर्तन

अब, औरों में नहीं

तो ख़ुद में सही.....बहुत सुन्दर रचना हार्दिक बधाई आपको ! सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 26, 2015 at 10:52am

आदरणीय शिज्जु भाई , रचना को आपका अनुमोदन मिला , रचना सार्थक हुई ! आपका आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 26, 2015 at 7:51am

वाह क्या बात है। आपकी यह रचना अभिव्यक्ति की स्वंत्रतता का पुरज़ोर समर्थन करती है। परिवर्तन खुद में हो पर सकारात्मक बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 25, 2015 at 10:03pm

आदरणीय सौरभ भाई , रचना मे गहरे उतर के केन्द्रिय भाव तक पहुंच के आपने जो प्रतिक्रिया दी है , मन प्रसन्न है , लिखना सार्थक  कर दिया आपने । 

परिवर्तन

अब, औरों में नहीं

तो ख़ुद में सही   ---     जब परिवर्तन जीवंतता का सबूत है ( तत्व है ) तो  इस लिहाज़ से अगर कोई परिवर्तन से इनकार करता है तो उसे  मर चुका है, यही मानना चाहिये , ऐसे में  हम क्यों मरें , हमे हमेशा आवश्यक परिवर्तन को स्वीकार करना चाहिये यही हमे सच में ज़िन्दा रखता है ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 25, 2015 at 9:51pm

आदरणीय विजय भाई , रचना के भाव स्वीकार करने के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 25, 2015 at 9:49pm

आदरणीय सोमेश भाई , रचना के अनुमोदन के लिये आपका हार्दिक आभार ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
yesterday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service