For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल - बहक ही जाने दो मुझको, कि अब बचा क्या है ( गिरिराज भंडारी )

1212   1122   1212   22  /112

चली गई मेरी मंज़िल कहीं पे चल के क्या

या रह गया मैं कहीं और ही बहल के क्या

 

वहाँ पे गाँव था मेरा जहाँ दुकानें हैं  

किसी से पूछता हूँ , देख लूँ टहल के क्या

 

असर बनावटी टिकता कहाँ था देरी तक

वही पलों में तुम्हें रख दिया बदल के क्या

 

हरेक हाथ में पत्थर छुपा हुआ देखा

ये गाँव फिर से रहेगा कभी दहल के क्या

 

मेरा ये घर सही मिट्टी, मगर ये मेरा है

मुझे न पूछ थे अरमाँ कभी महल के क्या

 

मुझे लगा कि अब , सूरज उदास रहता है

चलो तो पूछें, वो रोता रहा था ढल के क्या

 

बहक ही जाने दो मुझको, कि अब बचा क्या है

ये लम्हें आखिरी हैं अब करूँ सँभल के क्या

 

परों का साथ नहीं है जिसे उड़ानों में

तुम्हीं कहो वो करे फर्श पे उछल के क्या 

************************************** 

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

 

Views: 968

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 10, 2015 at 8:58pm

आदरणीय नरेन्द्र भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 10, 2015 at 8:57pm

आदरणीय वीनस भाई , गज़ल पर आपकी गरिमामय उपस्थिति के लिये अपका आभारी हूँ ।  जिस मिसरे पर आपने गौर करने को कहा है वो  वास्तव मे  बे बह्र हो गया है , मै उसे सुधार कर फिर से लिख रहा हूँ ---  मुझे लगा है  ये  , सूरज उदास रहता है  ।

आदरणीय वीनस भाई , बाक़ी बातें कल , कह के आपने इशारा किया है , कहन में जो भी कमियाँ हों ज़रूर बताइयेगा , अब इसी कमी के पीछे लगा हुआ हूँ , और लगना पड़ेगा भी , मुझे मालूम है अभी बहुत सीखना बाक़ी है । आपका पुनः आभार ॥

Comment by shree suneel on May 10, 2015 at 4:33pm
चली गई मेरी मंज़िल कहीं पे चल के क्या
या रह गया मैं कहीं और ही बहल के क्या/
ख़ूब... अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय गिरिराज सर, बधाई
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 8, 2015 at 10:04pm

आ0 भंडारी भाई जी,  गजब की गज़ल हुई है.  दाद कुबूल करे. सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 8, 2015 at 2:13pm

अनुज भाई

  1. इस रदीफ़ पर गजल को निभाना ही बड़ी बात है i सादर
Comment by narendrasinh chauhan on May 8, 2015 at 11:07am

वाह क्या बात है , खूब सुन्दर ग़ज़ल ,

Comment by वीनस केसरी on May 8, 2015 at 2:33am

इस ग़ज़ल पर शेर दर शेर बहुत कुछ कहा जा सकता है ...
मगर अभी बस यही कहना है कि इस मिसरे पर फिर से गौर फरमा लें ...

मुझे लगा कि अब , सूरज उदास रहता है

बाकी बातें कल करूंगा ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 7, 2015 at 10:58pm

आदरणीय विजय भाई , सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ । आपने सही कहा ' के क्या ' रदीफ चुन के मै  भी बहुत मुश्किल मे फँसा महसूस कर रहा था , बहुत समय लगा है ग़ज़ल पूरी होने में । आपका पुनःआभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 7, 2015 at 10:55pm

आदरणीय उमेश भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत शुक्रिया ॥

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 7, 2015 at 10:40pm
बहक ही जाने दो मुझको, कि अब बचा क्या है
ये लम्हें आखिरी हैं अब करूँ सँभल के क्या
" के क्या " कठिन तो है, पर आपने सरल बना दिया। बधाई आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
yesterday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service