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अर्जी (लघुकथा)/ रवि प्रभाकर

‘जी अब तो पेन्शन की अर्जी पास हो जाएगी ना ?’

अपने कपड़ों को ठीक करते हुए कमरे से बाहर निकलती हुई शहीद फौजी की विधवा ने मंत्री जी के पी.ए. से पूछा
‘अब तो काम हुआ ही समझो ! बस यह अर्जी कल एक बार डाॅयरेक्टर साहिब के पास भी ले जानी होगी'।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by kanta roy on May 10, 2015 at 10:42am
हर कहीं गिद्ध बैठे है तलाश में किसी जिंदा लाश की .....भूख ऐसी है कि ये मिटती ही नहीं ..... मजबूरीयों को कब तक बिकना होगा ..... आखिर कही तो अंत हो ये गिद्ध ...सदियों से इन गिद्धो ने लाचारी का माँस खाया है अब और नही ....... कुछ तो अब जरूर करना है .....इन गिद्धों को मारना है या मर जाना है ...... अब जो हो सो हो ....... आभार आदरणीय रवि प्रभाकर सर जी ..... चंद पंक्तियों ने मन में एक ज्वार सी पैदा कर दी ...इसलिए कुछ ज्यादा कह गई ...... क्षमा
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 10, 2015 at 10:27am

आ० रवि सर! सरकारी व्यवस्था पर कटाक्ष करती सटीक लघुकथा हुयी है,ऐसी घटनाए शर्म से सर झुका लेने को मजबूर कर देती है!

Comment by मनोज अहसास on May 9, 2015 at 9:16am
सर आप संवेदनशीलता को मैं प्रणाम करता हूँ
यदि लघुकथा किसी सत्य घटना से प्रेरित है तो बहुत दुर्भाग्य के दिन भारत में है और मै आपको बधाई देता हूं सफल अभिव्यक्त करने के लिए................
और यदि कथा केवल कल्पना पर आधारित है और आप व्यवस्था पर चोट करना चाहते है तो आप फ़ौज़ी की जगह दूसरा उदाहरण लेते तो अच्छा रहता .....
कम से कम शहीदों के विषय में निर्मित रचनाये बहुत चिंतन और आदर्शवाद पर आधारीत होनी चाहिये
त्रुटि के लिए अग्रिम क्षमा याचना
Comment by Ravi Prabhakar on May 9, 2015 at 7:42am

आभारी हूं आदरणीय जितेन्‍द्र भाई कि आपने रचना को समय दिया ।

Comment by Ravi Prabhakar on May 9, 2015 at 7:40am

धन्‍यवाद शशि बांसल जी, आपको इस मंच पर देखना सुखद लगा ।

Comment by Ravi Prabhakar on May 9, 2015 at 7:39am

लघुकथा के मर्म को समझने व अपना अमूल्‍य समय देने हेतु आपका धन्‍यवाद आदरणीय श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय जी।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 9, 2015 at 12:50am

मन को झकझोर कर रख देती लघुकथा , आदरणीय रवि जी. बहुत-बहुत बधाई आपको

Comment by shashi bansal goyal on May 8, 2015 at 6:41pm
सीधे मस्तिष्क और मौजूदा व्यवस्था पर चोट करती लघु कथा ।बहुत बधाई आदरणीय रवि प्रभाकर जी ।
Comment by Omprakash Kshatriya on May 8, 2015 at 4:15pm
इज्जत की अर्जी कहाँ-कहाँ पेश करनी होती है . यह तो कोई भुक्तभोगी ही बता सकता है . आदरणीय रवि प्रभाकर जी आप की सटीक व सारगर्भित रचना के लिए शुभकामनाए व बधाई .

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