For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

व्यवस्था (लघुकथा)/ रवि प्रभाकर

कौआ एक बार फिर प्यासा था। बहुत ढूंढने पर उसे फिर एक घड़े में थोड़ा सा पानी दिखाई दिया। एक बार फिर उसने पास पड़े कंकड़-पत्थर उठा उसमें डाले और जैसे ही पानी उसकी पहुँच तक आया तभी कुछ ताकतवर कौऐ एक झुंड में उस पर टूट पड़े और उसे वहां से खदेड़ कर उस पानी पर कब्जा कर लिया। बेचारा प्यासा कौआ एक बार फिर से पानी की तलाश में जुट गया।

.


(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 603

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 5, 2016 at 6:23pm

बहुत ही सुंदर कथा | बधाई स्वीकारें आदरणीय |

Comment by प्रदीप नील वसिष्ठ on December 1, 2015 at 10:33am

प्रिय भाई , आपकी बहुत सारी रचनाएं मन लगा कर चाव से पढ़ी। सब पर आह या वाह की टिप्पणी व्यावहारिक न होती इसलिए समग्र टिप्पणी स्वीकारें।
बहुत कम शब्दों में आप बहुत गहरी, मन को आलोड़ित करने वाली बात कह सकते हैं , यह प्रतिभा विलक्षण है। इसे बचाए रखें , यही दुआ है
हाँ , मुझे नहीं पता इस ब्लॉग पर लोग मन से की गई टिप्पणी को कैसे लेते हैं मगर आप अच्छे लेखक है इसलिए उम्मीद करता हूँ ,बुरा नहीं मानेंगे अगर मैं कहूँ कि आपकी ज्यादातर रचनाएं लघुकथा की जगह लघु-व्यंग्य हैं। थोड़ा समय निकाल कर इस एंगल से देखिएगा इन्हे।
शेष शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 31, 2014 at 9:40pm

तब और अब की स्थिति ऐसी नहीं होनी थी, मगर कई मायनों में है. ’माइट इज राइट’ एक ऐसी पारिपाटिक धारणा थी, जिसकी लाश पर लोक का लोक के लिए लोक के द्वारा तंत्र प्रतिस्थापित हुआ. लेकिन, यह उच्च अवधारणा अब भी पूरी तरह से विकसित होनी है.

भाई रविजी, आपकी इस कथा ने इसी अविकसित स्थिति और व्यवस्था को लाक्षणिक रूप में साझा किया है. आपकी संवेदनशीलता ने इस तथ्य को प्रस्तुत करने के क्रम में पुरानी कथा का बिम्बात्मक प्रयोग किया है. यह आपकी गहन सोच को उजागर करता है.

इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 15, 2014 at 9:00pm

बहुत बढ़िया लघुकथा, एक सही सन्देश भी. बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय रवि जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 15, 2014 at 12:38pm

प्रिय अनुज रवि , हर तरफ भूखे प्यासे हैं , और भूख सभ्यता छीन लेती है , बस यही तो हो रहा है , हर जगह , शक्ति शाली छीन लेता है ,कमजोर मारा जाता है | सुन्दर लघुकथा के लिए दिली बधाइयाँ |

Comment by Shyam Narain Verma on September 13, 2014 at 9:59am
बहुत बढ़िया लघुकथा ,बधाई
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 13, 2014 at 12:45am
बहुत सही प्रश्न उठाया है आपने आदरणीय प्रभाकर जी, पानी पर व्यवस्था का इतना जबरदस्त प्रभाव है कि क्या कौवा क्या कोई और प्यासा ही रह जाये। प्रेम चंद की कहानी ठाकुर का कुआं आज भी सामयिक है , व्यवस्था मानती है कि आदमी दस - बारह रूपये में पेट भर खाना खा लेता है , साफ़ पानी पीना चाहे तो बोतल बंद पानी बीस रूपये में मिलता है। भगीरथ महराज अगर एक दिन यहां आ ही जाये तो उन्हें भी बीस रूपये का बोतल बंद पानी खरीदना पडेगा वरना स्वच्छ पानी तो मुश्किल से ही मिलेगा . बहुत अच्छी कहानी के लिए बधाई .
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 11, 2014 at 6:02pm

रवि जी

अति सुन्दर i  वह दिन दूर नहीं जब सचमुच पानी के लिए देश आपस में लड़ेंगे i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं हम कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२जब जिये हैं दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं हम कान देते आपके निर्देश हैं…See More
1 hour ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service