For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक ग़ज़ल ग़ालिब की ज़मीन में

फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन/फ़इलुन

एक मिसरे में इधर मैंने मेरा दिल बाँधा
दूसरे में तेरे रुख़्सार का ये तिल बाँधा

यूँ लगा जैसे हुवा सारा ज़माना रौशन
मैंने दौरान-ए-ग़ज़ल जब महे कामिल बाँधा

ख़ून आँखों से टपकता है तो हैरत कैसी
तूने क्यूँ कस के बदन से ये सलासिल बाँधा

मुनकशिफ़ हो गया दुनिया पे मेरा फ़न आख़िर
उसने साफ़ा मेरे सर पे सर-ए-महफ़िल बाँधा

उस से अल्फ़ाज़ की कुछ भीक थी दरकार मुझे
इस लिये मैंने मियाँ शैर में साइल बाँधा

जिस क़दर दूँ मेरे दुश्मन को दुआ कम है "समर"
उसने क़ातिल को मेरे मद्दे मुक़ाबिल बाँधा

-------

महे कामिल:- पूरा चाँद

सलासिल :- बेड़ियाँ,ज़ंजीरें,सलासिल उर्दू का ऐसा शब्द है जिसे एक वचन और बहु वचन दोनों तरीक़े से ले सकते हैं जैसे "महासिल" ये महसूल की जमा है लेकिन इसे भी एक वचन और बहु वचन दोनों तरीक़ों से लिया जा सकता है ।

मुनकशिफ़ :- खुलना

मद्दे मुक़ाबिल :- आमने सामने
-------

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1483

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 19, 2015 at 7:43am

बहुत ख़ूब आ. समर कबीर सर.... शानदार ग़ज़ल के लिए बधाई 

Comment by Samar kabeer on June 18, 2015 at 11:35pm
जनाब महर्षि त्रिपाठी जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ,आपने सफ़ीना का "अर्थ" पुछा है,ये शब्द अरबी भाषा का है,इसके चार अर्थ होते हैं,

(1)कश्ती
(2)जहाज़
(3)बयाज़
(4)नोटबुक
Comment by maharshi tripathi on June 18, 2015 at 7:35pm

आ.Samar kabeer जी ,,कृपया सफीना का अर्थ बताये |

Comment by maharshi tripathi on June 18, 2015 at 7:31pm

जिस क़दर दूँ मेरे दुश्मन को दुआ कम है "समर"
उसने क़ातिल को मेरे मद्दे मुक़ाबिल बाँधा,,,,,,,,,,,,,ढेरों दाद आपको आ. Samar kabeer जी |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 18, 2015 at 5:52pm

आ० समर साहिब

क्या बुलंद गजल कही है i मायने बताकर आपने बहुत अच्छा किया . सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 18, 2015 at 2:34pm

आदरनीय समर भाई , आपकी इस उस्तादाना ग़ज़ल पर सिर्फ वाह वाह करते  रहे पढते तक ॥ दिली मुबारक बाद कुबूल करें ॥

Comment by वीनस केसरी on June 18, 2015 at 1:36pm

उस से अल्फ़ाज़ की कुछ भीक थी दरकार मुझे
इस लिये मैंने मियाँ शैर में साइल बाँधा

वाह वा जनाब क्या कहने

Comment by मनोज अहसास on June 18, 2015 at 12:41pm
बहुत खूब बाँधा
सर
बधाई
सादर
Comment by दिनेश कुमार on June 18, 2015 at 12:39pm

दिल से दाद क़ुबूल करें, सर.

Comment by दिनेश कुमार on June 18, 2015 at 12:37pm

बहुत ख़ूब, आदरणीय, कमाल किया है आप ने। वाह वाह वाह

मुनकशिफ़ हो गया दुनिया पे मेरा फ़न आख़िर
उसने साफ़ा मेरे सर पे सर-ए-महफ़िल बाँधा.... क्या कहने सर... वाह वाह

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
19 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
23 hours ago
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति के लिए ।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service