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ग़ज़ल - मगर मज़ा ही कहाँ है अगर न तू शामिल (गिरिराज भंडारी )

1212    1122    1212    22  /112

तेरे खतों में  रहा यूँ तो रंगो बू शामिल

मगर मज़ा ही कहाँ है अगर न तू शामिल

 

मुझे अधूरी किसी चीज़ की नहीं हाजत

मेरी हयात में हो जा तू हू ब हू शामिल

 

बिन आरज़ू भी कभी ज़िन्दगी कटी है कहीं

तू कर ले ज़िन्दगी में मेरी आरजू शामिल

 

किसी की याद भी तनहाइयों का दरमाँ है

किसी की याद की कर ले तू ज़ुस्तजू शामिल

 

झिझक नहीं , न जमाने से डर मेरे यारा

तू आ के सामने सब के हो रू ब रू शामिल

 

भुलाना इतना भी आसाँ नहीं है यादों को

है तेरी याद मेरे दिल के कू ब कू शामिल

असर दिखा के रहेगा ज़रूर इक दिन वो

तेरे लहू में अगर है मेरा लहू शामिल

सफर सफर सा लगा  और रास्ता मंज़िल

मेरे सफर में हुआ आज खूब रू शामिल

मज़ा लड़ाई का आता नहीं है बेख़ुद से

मज़ा जो चाहो,  करो खूब जंग जू शामिल   

***************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 28, 2015 at 10:10pm

आदरणीय रवि भाई , गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 28, 2015 at 10:10pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 28, 2015 at 10:09pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by Shyam Narain Verma on September 28, 2015 at 5:18pm

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई!

सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 28, 2015 at 3:35pm

आदरणीय गिरिराज सर, बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है. सबसे पहले तो ऐसे काफिये के साथ इस शानदार रदीफ़ के लिए हार्दिक बधाई .... इसने ग़ज़ल का मज़ा चौगुना कर दिया, मतला ने ही दिल लूट लिया जिस सहज ढंग से कथ्य का मर्म उभारकर आया है, मुग्ध हूँ. सभी अशआर एक से बढ़कर एक है लेकिन हासिल-ए-ग़ज़ल शेर बस कमाल है-

असर दिखा के रहेगा ज़रूर इक दिन वो

तेरे लहू में अगर है मेरा लहू शामिल

वाह वाह वाह ........दाद दाद दाद 

Comment by Ravi Shukla on September 28, 2015 at 1:13pm

आदरणीय गिरिराज जी

बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल के लिये अब तो यह बहर सांसों में रच बस गई है और उस पर इस तरह की ग़़ज़ल पढते है तो आनंद और भी बढ जाता है । सादर ।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 28, 2015 at 11:44am

अच्छे अश’आर हुए हैं आदरणीय गिरिराज जी, दाद कुबूल करें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 28, 2015 at 10:30am

आदरनीय बड़े भाई गोपाल जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 28, 2015 at 10:18am

आ० अनुज , बेहतरीन गजल के लिए बधाई .

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