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ग़ज़ल-आह उफ कर ले रू ब रू न आए।

२१२२ १२१२ २२

क्यूं मुझे मौत की ये बू न आये।
तेरी याद आए और तू न आये।

जख्म दर जख्म चींख,दर्द,आह,उफ।
हाल-ए-दिल,शे'र हू-ब-हू न आये।

रोज देखे किसी को छुप के हम।
आह उफ कर ले रू ब रू न आए।

रोज आए नजर से लब तक हम।
पर लबों तक ये आरजू न आये।

वो ग़ज़ल क्या ग़ज़ल जिसे सुनकर।
दर्द की आँख में लहू न आये।

होंठ पर फूल और दिल काला।
मुझको ये इल्मे गुफ्तगू न आये।

मौलिक व अप्रकाशित ।

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Comment by Ravi Shukla on March 15, 2016 at 12:52pm

आदरणीय राहुल जी बधाई इस गजल के लिये

Comment by Samar kabeer on March 14, 2016 at 11:14pm
जनाब राहुल डांगी जी,आदाब,अच्छी ग़ज़ल कही है आपने,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 14, 2016 at 11:27am

होंठ पर फूल और दिल काला।
मुझको ये इल्मे गुफ्तगू न आये।

बहुत खूब हार्दिक बधाई l

Comment by narendrasinh chauhan on March 14, 2016 at 10:04am

खूब सुन्दर रचना

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