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फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन

212 1222  212 1222 

जिन्दगी में कुछ लम्हे बेमिसाल तो आये

ख्वाब में खयालों में कुछ सवाल तो आये

बेखुदी में हैं अब भी, काश होश आ  जाता    

माँ को अपने बच्चे का कुछ खयाल तो आये

 

रूप में उधर चांदी , इश्क में इधर सोना

रोशनी बहुत होगी कुछ उछाल  तो आये

 

फूल खूबसूरत है,  है नहीं मगर खुशबू

हुस्न तो नुमायाँ है  बोल-चाल तो  आये

 

यूँ तो खून बहता है आदमी की धमनी में

किन्तु ये भी है लाजिम कुछ उबाल तो आये

 

मानता हूँ है बाकी  देश मे  हुनर काफी

किन्तु कोई जादू हो कुछ कमाल तो आये

आज भी भटकती है  वन करील में राधा

भूलकर कभी  ब्रज में  नंदलाल तो आये

(मौलिक व् अप्रकाशित )

 

 

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Comment

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Comment by Manan Kumar singh on July 2, 2016 at 10:52pm
आदरणीय गोपाल जी, मुझे लगा कि लम्हे होने से क्रिया में 'आये' के बदले शायद 'आयें' जरूरी हो जायेगा,इसलिये कहा था।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 2, 2016 at 8:35pm

आ० मनन जी , लम्हे ही उचित  है .कुछ लम्हा गलत होगा . सादर आभार .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 2, 2016 at 8:33pm

आ० अनुज भंडारी जी , आपके समर्थन से लगता है कुछ सुधार हो रहा है . आपसे हौसला और मार्गदर्शन अपेक्षित  है. सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 2, 2016 at 8:31pm

आ० कल्पना भट्ट जी --भारतीय महाकाव्यों की दो दुखियारी महिलाये  सीता और राधा  सदियों से  भारतीय नारियो के विराट  व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करती  आ रही हैं . मैं  कभी कभी उन्हें स्मरण अवश्य करता हूँ . सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 2, 2016 at 8:25pm

 आ० सुशील सरना जी , आप जैसे सवेदनशील व्यक्तित्व से समर्थन  पाकर  संतोष मिलता है . सादर . .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 2, 2016 at 8:22pm

राज बुन्देली जी ---- ओ बी ओ के मंच पर गजल कहना सीखा और कोशिश जारी है . सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 2, 2016 at 8:21pm

आ० नीलेश जी - आपके समर्थन से  बड़ी आश्वस्ति  मिली . आपके मार्ग दर्शन की सदैव प्रतीक्षा रहती है .

Comment by Manan Kumar singh on July 2, 2016 at 7:58pm
आदरणीय गिरिराज भाई, शायद लम्हे को लम्हा करना भी लाजिमी हो।आदरणीय गोपाल भाई को अच्छी गजल के लिए दिली बधाई!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 2, 2016 at 8:43am

आदरणीय बड़े भाई , बहुत खूब , अच्छी ग़ज़ल कही आपने , दिली मुबारकबाद आपको ।

मतले के -- ख्वाब में खयालों   को  ख्वाबों में खयालों - किया जा सकता है   दोनो बहु वचन सही लगेगा , बों की मात्रा भी गिराई जा सकती है ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 1, 2016 at 8:44pm

वाह वाह बहुत खूब आदरणीय |

यूँ तो खून बहता है आदमी की धमनी में

किन्तु ये भी है लाजिम कुछ उबाल तो आये

 

मानता हूँ है बाकी  देश मे  हुनर काफी

किन्तु कोई जादू हो कुछ कमाल तो आये

आज भी भटकती है  वन करील में राधा

भूलकर कभी  ब्रज में  नंदलाल तो आये   बहुत बढ़िया | 

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