1212 212 122 1212 212 122
कभी हुयी थी निसार आंखे कभी बहारे हयात आई
नहीं दिखा फिर मुझे सवेरा सदैव हिस्से में रात आई
बहुत बटोरे थे स्वप्न आतुर बहुत सजाये थे ख़्वाब मैंने
मेरी मुहब्बत मेरी जिदगी विदा हुयी तब बरात आयी
घना तिमिर था न रश्मि कोई न सूझ पड़ता था पंथ मुझको
बिना रुके ही मैं अग्रसर था निदान मंजिल हठात आई
मुझे स्वयं पर रहा भरोसा नहीं जुटाये अनेक साधन
मुझे बनाने मुझे सजाने कभी-कभी कायनात आयी
हृदय हमारा गरीब ब्राह्मण प्रवंचना में बना सुदामा
अधीर कान्हा के आंसुओं से धुले चरण तब परात आयी
बखान करता हूँ कृष्ण का मैं कभी रमापति के गीत गाता
हुआ हकीकी है इश्क मुझको कहाँ मजाजी की बात आयी
यहाँ तुम्हारी थी गर्म चर्चा, बड़ी अजब आसमाँ की बातें,
वहां अचानक विदा हुए तुम खबर बड़ी वाहियात आयी
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आआ० बाली जी , बारात तत्सम है , बरात तद्भव .प्रचलन में बरात शब्द अधिक् व्यापक है सब्दकोश में भी इसे मान्यता मिली है
हाथी, घोड़े, ऊँट या फुलवारी आदि भी रहती है । बरपक्ष के लोग, जो विवाह के समय वर के साथ कन्यावालों के यहाँ जाते हैं । जनेत । क्रि० प्र०—आना ।—जाना ।—निकलना ।—सजना ।—सजाना । २. कहीं एक साथ जानेवालों का बहुत
आ० गोपाल भाई जी ,बह्र बताने का बहुत बहुत शुक्रिया आपके मिसरे बह्र पर सही कसे हुए हैं |
परात वाला मिसरा दुबारा पढ़ा पूर्णतः स्पष्ट हुआ जो एकदम दुरुस्त है |इस प्रस्तुति पर पुनः बधाईयाँ लीजिये |
आ० दीदी , बहर इस प्रकार है
बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला
मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन
1212 212 122 1212 212 122
अधीर कान्हा के आंसुओं से धुले चरण तब परात आयी--- लग रहा है की चरण पहले धुल गए हैं तब परात आई है
-------- मेरा यही आशय है सादर . मार्ग दर्शन अपेक्षित.
आ० अनुज , मझ जैसे नौसिखिए को आपसे प्रेरणा मिलती है . आपने बहर के रुक्न 12122 12122 12122 12122 बताये यानि कि मुफायलातुन्. मुफायलातुन मुफायलातुन्. मुफायलातुन् किन्तु मेरी बह्र है-
बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला
मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन
1212 212 122 1212 212 122------------------------ मार्ग दर्शन चाहूँगा .
गोपाल जी आपको बहुत बहुत बधाइयाँ । गिरिराज जी ने सही रुक्न लिख के तक्तीअ कर दिया है।
ये बहुत ही मक़बूल बहर है जिस पर ये फिल्मी गाना है
बड़ी वफा से निभाई तुमने हमारी थोड़ी बेवफ़ाई ...
वैसे बारात का क़ाफ़िया यहाँ नहीं आएगा ...बारात होता है न की बरात
ये कौन सी बह्र है मैं समझ नहीं पा रही हूँ --जैसे की आ० गिरिराज जी ने अरकान लिखे १२१२२ सालिम अरकान में मुसम्मिन हैं तो भी बह्र का नाम क्या है क्यूंकि ये सालिम अरकान तो अरुज शास्त्र में नहीं है या मुझे ही याद नहीं है
आद० गोपाल भाई जी आपसे गुजारिश है आप इस बह्र का नाम भी बता दें फिर ग़ज़ल समझने में और आसान हो जायेगी
मेरी मुहब्बत मेरी जिदगी विदा हुयी तब बरात आयी---इसकी बह्र जांच लें
मेरी मुहब्बत ये जीस्त मेरी विदा हुयी तब बरात आयी--ऐसे कर सकते हैं
अधीर कान्हा के आंसुओं से धुले चरण तब परात आयी---जब परात कर लें वरना लग रहा है की चरण पहले धुल गए हैं तब परात आई है
इस लम्बी बह्र पर बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है भाई जी दिल से बहुत-बहुत बधाई|
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , क्या बात है , बहुत कठिन बहर को लेकर बढिया निभाया आपने । आपको दिली मुबारक बाद आदरनीय ।
बह्र के रुक्न ऐसे होंगे -- 12122 12122 12122 12122 सुधार लीजियेगा ।
बहुत ही बेहतरीन उम्दा ..शुरुआत ही सुंदर हुई..
"
कभी हुयी थी निसार आंखे कभी बहारे हयात आई
नहीं दिखा फिर मुझे सवेरा सदैव हिस्से में रात आई".......
शेर सभी दिल को छू गये...!! दाद सर !!
सादर !!
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर |
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