For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहरे रमल मुसम्मन महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122 2122 2122 212

दीप जलकर थक गया ऐसे समय आये तो क्या
हो गया जीवन धुंआ तब गीत यदि गाये तो क्या

चाहता था मैं तृषित उस दृष्टि का आभास हो
नेह की सूखी फसल पावस कहर ढाये तो क्या

है प्रतीक्षा में कठिन तिल-तिल सुलगना उम्र भर
स्वाति यदि निष्प्राण चातक को नहा जाए तो क्या

हो सके कब स्वयम के, परिवार के या प्यार के
गीत के या देश के हित कुछ न कर पाए तो क्या

राग की , अनुराग की रुत सर्वदा आती नही
जल चुका दावाग्नि सा तब जलद–पट छाये तो क्या

आंसुओं में थे विरह के गीत जो मेरे ढले
उम्र की काली अमावस में तुम्हे भाये तो क्या

मैं क्षितिज को पार करके आ गया हूँ इस तरफ
तुम अगर भागीरथी का श्रोत भी लाये तो क्या

(मौलिक व अप्रकाशित )

Views: 407

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on August 1, 2016 at 5:41pm
श्रद्धेय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी मैं गजल के बारे में अधिक तो नहीं जानता मगर कोशिश में लगा रहता हूँ।आपकी इस गजल के प्रत्येक शेर ने दिल को छू लिया।हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Shyam Narain Verma on August 1, 2016 at 5:24pm
सुंदर भावों की सुंदर गजल   … हार्दिक बधाई आदरणीय .सादर
Comment by रामबली गुप्ता on August 1, 2016 at 3:15pm
वाह वाह और वाह इस ग़ज़ल को पढने के बाद बस एक शब्द-वाह। शेर दर शेर बधाई लीजिये आद0 गोपाल नारायण जी। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल हुई है। गिरिराज भाई जी के अनुसार बहर में संशोधन का अनुरोध है। पुनः बधाई।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 1, 2016 at 9:23am

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , बहुत खूबसूरत गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ कुबूल करें ।

दो श्ब्दों की मात्रिकता गलत लेने से दो मिसरे बेबह्र हो गये हैं , कृपया देख लीजियेगा --

हो सके कब/   स्वयम के, परि/ वार के या / प्यार के    ---स्वयम --12  आपने 21 मात्रा लेली है

जल चुका दा/ वाग्नि सा तब/   जलद–पट छा/ ये तो क्या   ---    जलद  - 12  सही है , आपने इसकी भी  मात्रा 21 ले ली है

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 1, 2016 at 7:02am
बहुत खूब । इस रचना के लिए बधाई आदरणीय।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ग़ज़ल — 212 1222 212 1222....वक्त के फिसलने में देर कितनी लगती हैबर्फ के पिघलने में देर कितनी…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
5 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
16 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
16 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
16 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
16 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
16 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service