कुण्डलिया
हुलसी माँ की गोद में सुन्दर सुत अभिराम
जन्म समय जिसने किया उच्चारण श्री राम
उच्चारण श्री राम रामबोला कहलाया
सुख से था वैराग्य कष्ट जीवन भर पाया
कहते हैं ‘गोपाल’ बना तृण से वह तुलसी
जितना रहा अभाव भक्ति उतनी ही हुलसी
मनहर घनाक्षरी
किया रचना विचार भाषा में प्रथम बार
बह चली रस-धार भाव और भक्ति की
देख कविता का रंग विदुष समाज दंग
हुई जयकार फिर लोक भाषा शक्ति की
जीवन में राग नया राम अनुराग नया
प्रकट किये स्वरुप ब्रह्म अनुरक्ति की
मानस में तुलसी ने भरे सब भाव भीने
संत मत ,वेद तत्व कामना विरक्ति की
(अप्रकाशित मौलिक)
Comment
आदरणीय बड़े भाई , गोस्वामी तुलसी दास जी की यादें ताज़ा करतीं आपकी छंद रचना के लिये दिल से बधाइयाँ ।
कहते हैं ‘गोपाल’ बना तृण से वह तुलसी
जितना रहा अभाव भक्ति उतनी ही हुलसी
बहुत सुंदर आदरणीय डॉ गोपाल जी भाई साहिब ... दोनों ही प्रस्तुतियां भक्ति भाव की अनुपम प्रस्तुतियां हैं। हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर।
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