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ग़ज़ल ( ख़िज़ाँ भी शामिल बहार में है )

१२१२२ - १२१२२

हंसी न अश्कों की धार में है ।

वफ़ा फ़क़त एतबार में है ।

लबों पे मुस्कान आँख है नम

ख़िज़ाँ भी शामिल बहार में है ।

लिपटना आता कहाँ है गुल को

ये ख़ास खसलत तो खार में है ।

निकाल दूँ अपने दिल से  उनको

कहाँ मेरे अख्तियार में है ।

जो देख ले खोए होश अपना

कशिश वो  रूए निगार में है ।

जुनूने दीदारे यार  देखो

खड़ा वो कल से कतार में है ।

कहाँ है तस्दीक यह अता कम

तू अब भी उनके शुमार में है ।

(मौलिक व अप्रकाशित ) 

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Comment

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Comment by Ravi Shukla on July 8, 2016 at 11:05am

आदरणीय तसदीक अहमद जी बढि़या गजल है ।  बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Rahila on July 8, 2016 at 10:59am
"निकाल दूँ अपने दिल से उनको
कहाँ मेरे अख्तियार में है ।"बेहद सहज भाव से गहरी बात कह गया ये शेर। वेसे तो पूरी ग़ज़ल बहुत शानदार हुयी ।बहुत बधाई आदरणीय सर जी !सादर
Comment by Mahendra Kumar on July 7, 2016 at 9:30pm
बहुत ही अच्छी ग़ज़ल लिखी है आपने आदरणीय तस्दीक अहमद जी, हार्दिक बधाई!
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on July 7, 2016 at 8:57pm
आदरणीय तसदीक अहमद साहब बहुत ही सुन्दर शब्द चयन। बेजोड रचना। बधाई स्वीकार करें ।

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