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ग़ज़ल (ज़िंदगी के लिए )

ग़ज़ल (ज़िंदगी के लिए )

------------------------------

२१२ ---२१२ --२१२ --२१२

मेरे महबूब तेरी ख़ुशी के लिए ।

ले लिए हम ने गम ज़िंदगी के लिए ।

गौर से अपने कूचे पे डालें नज़र

मुंतज़िर है कोई आप ही के लिए ।

मुस्कराता रहे ज़ुल्म सह के सदा

कब है मुमकिन हर इक आदमी के लिए ।

इक क़लम और कागज़ ही काफी नहीं

लाज़मी है सनम शायरी  के लिए ।

ऐसे आशिक़ हुए हैं रहे इश्क़ में

जान दे दी जिन्होंने किसी के लिए ।

जो किसी से भी करता नहीं है वफ़ा

 हम ने उसको चुना दोस्ती के लिए ।

जो न कर पाए तस्दीक वादा वफ़ा

उसको चुनते हैं क्यों रहबरी के लिए

(मौलिक व अप्रकाशित )    

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Comment

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 18, 2016 at 10:41pm

जनाब सुनील साहिब , ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का शुक्रिया 

Comment by shree suneel on July 18, 2016 at 3:21am
जो किसी से भी करता नहीं है वफ़ा
हम ने उसको चुना दोस्ती के लिए... व्वाहह!
अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय तस्दीक अहमद साहब. हार्दिक बधाई आपको. सादर
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 16, 2016 at 10:53pm

जनाब जयनित कुमार साहिब , ग़ज़ल  में गहराई से शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by जयनित कुमार मेहता on July 16, 2016 at 5:48pm
मुस्कराता रहे ज़ुल्म सह के सदा
कब है मुमकिन हर इक आदमी के लिए ।

इक क़लम और कागज़ ही काफी नहीं
लाज़मी है सनम शायरी के लिए ।

बहुत खूब..आदरणीय।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 15, 2016 at 4:26pm

मोहतरम   जनाब मनन कुमार  साहिब ,   ग़ज़ल में गहराई से शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का शुक्रिया       

Comment by Manan Kumar singh on July 15, 2016 at 10:05am
वाह बहुत खूब तसदीक भाई,दाद कुबूल फरमायें।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 15, 2016 at 8:51am

जनाब महेंद्र कुमार  साहिब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 15, 2016 at 8:49am

मोहतरमा राहिला साहिबा आदाब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया

Comment by Mahendra Kumar on July 15, 2016 at 6:32am
आदरणीय तस्दीक़ जी, बहुत ही ग़ज़ल लगी आपकी। ढेर सारी बधाई, सादर!
Comment by Rahila on July 14, 2016 at 11:31pm
"जो किसी से भी करता नहीं है वफ़ा
हम ने उसको चुना दोस्ती के लिए ।"
वाह,क्या खूब लिखा आपने आदरणीय खान साहब ।पूरी गजल5ही शानदार बन पड़ी।तहे दिल से बधाई ।सादर

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