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मूल में क्या नशा बो रहा (महालक्ष्मी छंद )

महालक्ष्मी छंद

 

घूस से जो खड़ा हो गया

क्या सभी से बड़ा हो गया?

आग में जो तपा झूठ की

एक थोथा घड़ा हो गया

 

ज्ञान वाला यहाँ हारता

मूर्ख बाजी यहाँ मारता

मार देता वही साँच को    

झूठ का वेष जो धारता   

 

आज का  हाल क्या हो रहा

क्यूँ युवा देश का खो रहा

सूखती पौध आशा भरी

मूल में क्या नशा बो रहा

 

सोचता है युवा क्यूँ पढूँ

है कहाँ राह आगे बढूँ

हो न पूरे यहाँ जो कभी

ख़्वाब मैं वो यहाँ क्यूँ गढ़ूँ

 

सो रहे वो जगाना तुझे

मार्ग सीधा दिखाना तुझे

थाम तू लेखनी को अभी

पीढ़ियों को सिखाना तुझे

मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

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Comment

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Comment by Ashok Kumar Raktale on July 19, 2016 at 8:28am

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर, सुंदर महालक्ष्मी छंद प्रस्तुत किया है अपने. बहुत-बहुत बधाई. किन्तु  मुझे लगता है महालक्ष्मी छंद में तुकांतता सम-विषम चरणों के बीच होती है. एक प्रयास मेरा देखकर बताएं क्या यह तुकांतता गलत हैं ? सादर.

श्याम से हो रहा सामना , झूमती प्रीति की भावना |

राधिका मुग्ध है शाम से, कृष्ण गोविन्द के नाम से ||

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 18, 2016 at 10:43pm

रगणात्मक छन्दों में से महालक्षमी छन्द का सम्यक निर्वहन हुआ है आदरणीया राजेश कुमारीजी. हार्दिक शुभकामनाएँ 

कृपया ध्यान दे...

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