For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

  

“अब बोल चारू कैसे आना हुआ कैसे याद आ गई आज मेरी ” जूही ने चाय  के  प्याले  हटाते  हुए प्यार से ताना देते हुए कहा|

 “बस ये समझ ले मेरा उस जगह से मन भर गया तू यहाँ मेरे लिए मकान ढूँढ ले ”|

  “फिर भी बता न क्या हुआ?”

 “तुझे याद होगा मैंने एक बार बताया था कि मेरे घर के ठीक सामने  सड़क  के  दूसरी पार गाडियालुहारों ने अपनी झोंपड़ियाँ डाल  रक्खी हैं | जिनका काम लोहे से औजार व् बर्तन बनाना फिर उनको आस पास के घरों में बेचना होता है”  |

“हाँ हाँ याद है तो?”

“मेरे घर के ठीक सामने भूरे की झौंपडी थी| उसकी नई-नई शादी हुई थी उसकी दुल्हन झूमर बहुत सुन्दर थी भूरे के पाँव जमीन पर नहीं पड़ते थे उन दिनों|

”देखो मेमसाब दुनिया में सबसे सुन्दर है न अपनी झूमर” मुझसे मिलाते हुए भूरा कितना खुश हो रहा था उस दिन|

दो तीन दिन बाद ही झूमर ने घर का काम करना शुरू कर दिया उसके चूड़ी भरे  हाथ जब पक्कड से तपे लोहे को आग से निकाल कर शिला पर रखते  और ऊपर से भूरा हथौड़ा मारता तो चूड़ियाँ छनछना पड़ती फिर वो दोनों हँसने लगते |धीरे धीरे  झूमर ने भी घर के आस पास समान बेचना शुरू किया किन्तु भूरा उसे दूर नहीं जाने देता था”|

“फिर क्या हुआ”?

“फिर एक दिन वो मनहूस घड़ी आई शाम को जब झूमर लोहा पकड़ रही थी भूरे ने जैसे ही हथौड़ा पूरे जोर से लोहे पर मारना चाहा तो झूमर का सिर उसी वक़्त आगे झुक गया और हथौड़ा लोहे के बजाय झूमर के सिर के बीचोबीच जा पड़ा  झूमर की वो चीख मेरे कानों में आज भी सुनाई देती है| फिर पुलिस आई  भूरे को पकड़कर जेल में डाल दिया”|

“आगे फिर??”

“कुछ महीनों बाद  एक शाम तेज बारिश हो रही थी अचानक भूरा मेरे दरवाजे पर पँहुच गया| मानो जैसे मेरा सारा खून सूख गया हो| छह फुटा हट्टा कट्टा जवान सिर्फ हड्डी का ढांचा बन कर रह गया था |

देखकर मुझे ख़ुशी भी हुई आश्चर्य भी हुआ मैंने पूछा- “तुम्हे छोड़ दिया उन्होंने ?” 

“जी मेमसाब, हादसा समझ कर छोड़ दिया” भूरे ने कहा |

मैंने कहा –“चलो बहुत अच्छा हुआ अब अपने को सँभालो”

मेरी बात सुनकर उसके मुँह पर रहस्यमयी सी मुस्कान देखकर मुझे अजीब सा लगा मैंने पूछा –“कोई काम था मुझसे”?

   

“जी,ये भारी तवा झूमर ने आपके लिए बनाया था तो मैंने सोचा आपको दे दूँ

 और ....”

“और क्या?? बोलो बे झिझक बोलो मैं क्या मदद कर सकती हूँ तुम्हारी”

कह कर चारू कुछ चुप सी  हो गई |

“ आगे क्या हुआ चारू” ? जूही ने पूछा|

फिर वो बोला –“मेमसाब आप झूमर की कहानी लिख रही थी ना?”

“अरे हाँ पर वो तो उसके मरने के साथ ही खत्म हो गई भूरे” कहते हुए मेरा गला भर्रा गया था  |  

“नहीं मेमसाब जी वो अधूरी कहानी थी अब उसे पूरी करो आप उसे बहुत चाहती थी न तो अब उसे जरूर पूरी करो ”| 

“अब क्या बचा लिखने को बोलो” मैंने पूछा|

“मेमसाब जी झूमर को मैंने मारा था” ये सुनते ही मेरा खून मानो जम गया हो   हलक से आवाज ही नहीं निकली आँखों से ही घूर कर पूछा मगर क्यूँ?

“वो दूसरी गली के बाबू जी हैं न जिनका पीले रंग का बड़ा सा मकान है वो झूमर को किसी न किसी बहाने से बुलाने लगे थे झूमर भोली थी समझती नहीं थी मैंने उससे कसम ली थी की वो उनके पास नहीं जायेगी पर उस दिन भी जब वो वहाँ गई तो मेरा खून खोल गया और मैं वो सब कर बैठा..... पर मेमसाब जी हमारी झूमर वैसी नहीं थी मुझे जेल में ही पता चल गया था उस दिन वो वहाँ माली को कुछ औजार देने गई थी पैसे लेकर पास के बाजार से मेरे लिए नया कुर्ता खरीद कर लाई  थी जो अगले दिन मेरे जन्मदिन पर देने वाली थी इस लिए मेरे पूछने पर कुछ नही बोली बस हँसती रही थी  |   

मुझ पापी को तो मेमसाब नरक में भी जगह नहीं मिलेगी उस हाथ को तो मैं सजा दे चुका जिससे हथौड़ा मारा था बस अब इस शरीर से न जाने कब छुटकारा मिलेगा कब अपनी झूमर के पास जाकर उससे माफी माँगूँगा ”|

यह कह कर जब उसने चादर हटाई तो मेरी चीख निकल गई उसका  दाहिना हाथ नहीं था  उसने अपने पूरे बदन को  भी चाकुओं से गोद रक्खा था|

“आज यहीं तक मेमसाब कल कहानी पूरी हो जायेगी”

 यह कह कर पहेली सी छोड़कर वो चला गया| 

मैं पूरी रात इसी कशमकश में लगी रही की क्या पुलिस को इसकी करतूत बताऊँ मगर फिर सोचा पुलिस इससे ज्यादा क्या दंड देगी इसको जो ये खुद को दे रहा है|

 अगले ही दिन सुबह ही उसकी झौंपडी के सामने भीड़  देखकर मैं माजरा भांप गई |हाँ कुछ खाकर उसने खुद को खत्म कर लिया था |

मुझसे वहाँ नहीं रहा गया इसलिए यहाँ आ गई तेरे पास”|

“अब क्या सोचा चारू”? जूही बोली|  

“इस कहानी को कल प्रकाशक के पास ले जाऊँगी इसका छपना बहुत जरूरी है जूही  ताकि फिर कोई  झूमर इस तरह न जाए | कोई हँसता खेलता परिवार इस तरह बर्बाद न हो” |

मौलिक एवं अप्रकाशित         

Views: 1769

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nita Kasar on August 3, 2016 at 12:47pm
शक का कोई इलाज नही है फिर भले ही अपराधी खुद को वीभत्स दंड क्यों ना दें लें,भूरा के मन में जो चल रहा था उसके आत्मा की चीत्कार थी।बधाई आपको आद०राजेश कुमारी जी ।
Comment by Rahila on August 3, 2016 at 12:32pm
मेरे ख्याल से इस शक ने केवल भूरा का घर ही नही जाने कितनो के घर बरबाद कर चुका है। बहुत शानदार प्रस्तुतीकरण आदरणीया दीदी!सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 3, 2016 at 12:15pm

प्रिय कल्पना भट्ट जी ,आपको लघु कथा पसंद आई आपका दिल से प्रभूत आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 3, 2016 at 12:14pm

आद० तेजवीर सिंह जी ,इस कहानी ने अपने पाठक पर इतना प्रभाव छोड़ा ये पढ़कर मैं अपना लेखन कर्म अपना परिश्रम सार्थक मान रही हूँ तथा आश्वस्त भी हो रही हूँ कि इस कहानी का मर्म पाठक के दिल में जगह बना पाया |तहे दिल से बहुत बहुत आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 3, 2016 at 12:10pm

प्रिय प्रतिभा जी ,आपको कहानी पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हो गया \सच पूछो तो लिखते वक़्त मेरे भी दिमाग में आया था की कहानी कुछ लम्बी हो रही है अतः हर समभाव कोशिश करके देखि किन्तु छांटने से वो बात नहीं आ पा रही थी घटना प्रधान कहानी है तो उससे इसमें होने वाली घटनाओं का रूप धूमिल हो रहा था सो ऐसे ही रहने दिया इतना वर्णन इस कहानी की आवश्यक डीमांड हो गया था |

आपका बहुत- बहुत आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 3, 2016 at 12:07pm

आद० समर भाई जी ,आपको कहानी पसंद आई आपका तहे दिल से आभार | ये कहानी एक सच्ची घटना से प्रेरित होकर  लिखी गई है जिसमे  मैंने कुछ अपने हिसाब से एडीटिंग की है हर संभव कोशिश के बाद इसको लघु रूप नहीं दे पाई क्योंकि उससे इसमें होने वाली घटनाओं का रूप धूमिल हो रहा था सो ऐसे ही रहने दिया इतना वर्णन इस कहानी की आवश्यक डीमांड हो गया था |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 3, 2016 at 12:03pm

आद०  श्याम नारायण जी, आपको ये लघु कथा पसंद  आपका दिल से बहुत- बहुत आभार| 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 2, 2016 at 10:26pm
बहुत बढ़िया आदरणीया दी । बेहतरीन लघुकथा हुई है ।हार्दिक बधाई दी ।
Comment by TEJ VEER SINGH on August 2, 2016 at 10:01pm

 हार्दिक बधाई आदरणीय राजेश कुमारी जी !बेहद मार्मिक और हृदय स्पर्शी प्रस्तुति!लघुकथा को पढ़ते समय मेरे शरीर में अजीब सी अनुभूति होने लगी!रोंगटे खड़े हो गये! बेहतरीन चित्रण !

Comment by pratibha pande on August 2, 2016 at 8:08pm

  शक की दवा लुकमान हकीम के पास भी नहीं है  . ये कहावत  अक्सर  चरितार्थ  होते देखते हैं हम .. यहाँ  पर तो नायक  उस तबके से है जहां शिक्षा का प्रसार नहीं है पर तथाकथित शिक्षित और अभिजात्य कहे जाने वाले वर्ग की मानसिकता में भी ते कीड़ा बहुतायत में विद्यमान रहता है ...  हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको इस रचना पर  आदरणीया राजेश जी ...भावों को नुक्सान पहुंचाए बिना कथा में कुछ कांट छांट के साथ  शिल्प में और अधिक कसावट आ जायेगी .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Vikas is now a member of Open Books Online
21 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service