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चांदनी ... (क्षणिका)

चांदनी ... (क्षणिका)

तमाम शब्
माहताब
अर्श पर
मुझे

घूरता रहा
रकीबों सा

निचोड़ता रहा
मन की झील पर
मैं
उसकी
चांदनी

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 861

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Comment by Sushil Sarna on January 5, 2017 at 1:18pm

आदरणीय  Samar kabeer   जी प्रस्तुति को अपने आत्मीय  स्नेह से मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on January 5, 2017 at 1:18pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव   जी प्रस्तुति को अपने आत्मीय  स्नेह से मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by Mahendra Kumar on January 4, 2017 at 10:32pm
बहुत बढ़िया क्षणिका है आदरणीय सुशील सरना जी। हार्दिक बधाई। सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 4, 2017 at 10:09pm
क्या कहने बहुतखूब आदरणीय
Comment by Samar kabeer on January 4, 2017 at 9:19pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत सुंदर शानदार रचना,अंत ने जान डाल दी इसमें,वाह बहुत ख़ूब, इस प्रस्तुति पर बधाई देता हूँ ।
Comment by Sushil Sarna on January 4, 2017 at 8:22pm

आदरणीय  narendrasinh chauhan   जी प्रस्तुति को  अपने आत्मीय स्नेह से शोभित कर मान देने का दिल से आभार। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 4, 2017 at 8:21pm

वाह  इस छोटी सी कविता का सौन्दर्य लाजवाब है , आ० सरना जी .

Comment by narendrasinh chauhan on January 4, 2017 at 6:58pm

लाजवाब रचना 

Comment by Sushil Sarna on January 4, 2017 at 5:37pm


आदरणीय    सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी प्रस्तुति के भावों को आपने आत्मीय मान से पुरस्कृत करने का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on January 4, 2017 at 5:37pm


आदरणीय   मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति के भावों को आपने आत्मीय मान से पुरस्कृत करने का हार्दिक आभार।

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