For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरी तरह से तुम्हारा ये हाल हो के न हो(ग़ज़ल 'राज')

१२१२  ११२२   १२१२  ११२

मेरी वफा का तुम्हें  कुछ ख़याल हो के न हो

इनायतों का खुदा की कमाल हो के न हो

 

मैं हो गई हूँ मुहब्बत में क्या से क्या ए सनम   

मेरी तरह से तुम्हारा ये हाल हो के न हो

 

बिना पढ़े ही निगाहों से दे दिया है जबाब

लिखा जो खत में वो मेरा सवाल हो के न हो

 

गुलाब  से ही मुहब्बत करे ज़माना यहाँ

शबाब उसमे है पूरा जमाल हो के न हो

 

कमाँ से कितने उछाले  हैं तीर भँवरे यहाँ

ये हाथ में है गुलों के विसाल हो के न हो

 

नजर नज़र से मिली सुखरू हुई वो कली 

हथेलियों ने मला वो गुलाल हो के न हो 

 

ग़ज़ल लिखी है लबों से तुम्हारे दिल पे सनम  

तुम्हारे दिल को भले अब मलाल हो के न हो

------मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 795

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 8, 2017 at 8:59pm

आद० समर भाई जी,ग़ज़ल पर हमेशा आपकी प्रतिक्रिया का इन्तजार रहता है आपके  मार्ग दर्शन  का सदैव स्वागत है मूल पोस्ट में आपकी इस्स्लाह के अनुसार संशोधन कर लिया है इसमें भी कर लूँगी |आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लेखन कर्म सार्थक हुआ तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया आपका भाई जी .

Comment by Samar kabeer on February 8, 2017 at 7:44pm
जनाब मिथिलेश जी के लिये नमूने का एक मतला:-
"उसी का ख़्वाब उसी का ख़याल नींद में है
जवाब जाग रहा है,सवाल नींद में हे '(कुँअर बेचैन)
Comment by Samar kabeer on February 8, 2017 at 7:40pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,ग़ज़ल उम्दा हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
छटे शैर में 'सुखरु' को "सुर्ख़रु" कर लें,टाइपिंग मिस्टेक है शायद ।अब आपने अरकान सही लिख दिये हैं,लेकिन रदीफ़ में 'हो के न हो' को " हो कि न हो"कीजिये ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 8, 2017 at 5:35pm

आद० मिथिलेश भैया ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हो गया .आपने सही ध्यान दिलाया भैया अरकान लिखते हुए दूसरी ग़ज़ल के हैं  दरअसल अरकान इस तरह हैं --१२१२   ११२२   १२१२   ११२ बह्र --मुजतस मुसम्मिन मखबून महजूफ़  है वो पोस्ट करते हुए गलत टाइप हो गए 

वो मिसरा भी इस तरह कर रही हूँ --नजर नजर से मिली सुर्खरू हुई वो  कली

इसको एडिट करके दुबारा पोस्ट करती हूँ ध्यान दिलाने का आपका बहुत बहुत शुक्रिया भैया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 8, 2017 at 5:09pm

आद० डॉ. आशुतोष जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ दिल से बहुत बहुत आभार शुक्रिया .  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 8, 2017 at 4:20pm

आदरणीया राजेश दीदी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. अशआर एक से बढ़कर एक हुए हैं. हार्दिक बधाई आपको. यह अवश्य है कि ग़ज़ल की बह्र १२१२  २१२२  १२१२  २२/११२ लग रही है किन्तु आपने १२१२  २१२२  १२१२  २१२ ली है. उस पर गुनीजन ही उचित मार्गदर्शन दे सकते हैं. मेरे हिसाब से बह्र १२१२  २१२२  १२१२  २२ लग रही है और इस आधार पर यह मिसरा मुझे बेबहर लगा-

//नजर नज़र से मिली हुस्न हो गए सुर्खरू//

टंकण त्रुटी== जबाब- जवाब 

हो सकता है बह्र पहचानने में मुझसे गलती हुई हो.  मेरे लिए यह बिलकुल नई बह्र है. यदि इस बह्र में कोई प्रसिद्द ग़ज़ल/गीत हो तो कृपया अवश्य साझा कीजियेगा. सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 8, 2017 at 2:35pm

आदरणीया राजेश जी ..आज की आपकी इस शानदार ग़ज़ल को धीरे धीरे पढ़ा ..बहतु ही उम्दा ग़ज़ल है .

कमाँ से कितने उछाले  हैं तीर भँवरे यहाँ

ये हाथ में है गुलों के विसाल हो के न हो..

बिना पढ़े ही निगाहों से दे दिया है जबाब

लिखा जो खत में वो मेरा सवाल हो के न हो....इन शेरो के लिए बिशेस रूप से बधाई स्वीकार करें सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
28 minutes ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
12 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
22 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service