1212 1212 1212 1212
फँसा रहे बशर सदा गुनाह ओ सवाब में
हयात झूलती सदा सराब में हुबाब में
बची हुई अभी तलक महक किसी गुलाब में
बता रही हैं अस्थियाँ छुपी हुई किताब में
जहाँ जुदा हुए कभी रुके वहीं सवाल हैं
गुजर गई है जिन्दगी लिखूँ मैं क्या जबाब में
लिखें जो ताब पर ग़ज़ल सुखनवरों की बात अलग
वगरना लोग देखते हैं आग आफ़ताब में
फ़िज़ूल में ही अब्र ये छुपा रहा है चाँद को
जमाल हुस्न का कभी न छुप सका हिजाब में
नजर लगे न मनचलों की गुलसिताँ में सोचकर
सहम सहम निकल रही कली कली नकाब में
उसूल क्या है जाम का या मयकदों की शाम का
उदास हों या खुश सदा ही डूबते शराब में
-------- मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद० विजय निकोर जी, आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लेखन सफल हो गया बहुत बहुत शुक्रिया .
बहुत ही खूबसूरत गज़ल लिखी है। शेर दर शेर बधाई, आदरणीया राजेश जी
आद० डॉ० आशुतोष मिश्राजी ,आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर मुग्ध हूँ मेरा रचनाकर्म सार्थक हो गया दिल से बहुत बहुत आभार आपका सादर .
आद० सुशील सरना जी ,आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ मेरी ग़ज़ल सार्थक हो गई आपका दिल से बहुत बहुत शुक्रिया सादर .
आद० बृजेश कुमार बृज जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से बहुत बहुत शुक्रिया| .
आद० मिथिलेश भैया ,ग़ज़ल पर आपकी शिरकत और समीक्षा से अभिभूत हूँ मेरी ग़ज़ल धन्य हुई आपकी इस्स्लाह काबिले गौर है औ लिखते लिखते न जाने ओ कैसे लिख गई ध्यान दिलाने का बहुत बहुत शुक्रिया |
बची हुई अभी तलक महक किसी गुलाब में
बता रही हैं अस्थियाँ छुपी हुई किताब में
गज़ब आदरणीया राजेश कुमारी जी गज़ब ... कितने गहन भाव के अशआर लिखे हैं आपने। नमन आपकी लेखनी को। खूबसूरत से इन अहसासों से सजी ग़ज़ल को पेश करने की हार्दिक बधाई।
आदरणीया राजेश दीदी, बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है आपने. शेर-दर-शेर दाद हाज़िर है-
फँसा रहे बशर सदा गुनाह ओ सवाब में
हयात झूलती सदा सराब में हुबाब में..............गुनाह-ओ-सवाब का वज्न गुनाहो-सवाब अनुसार 121-121 अथवा मात्रा उठा कर 122-121 हो सकते है परन्तु क्या गुनाह-121 ओ-1 सवाब-121 और गुनाह-121 ओ-2 सवाब-121 हो सकते हैं?
मुझे लगता है दीदी 'ओ' को 'में' 'औ' अथवा 'या' किया जाना उचित होगा.
बची हुई अभी तलक महक किसी गुलाब में
बता रही हैं अस्थियाँ छुपी हुई किताब में.............. बहुत शानदार शेर हुआ है दीदी. वाह ....एक निवेदन - गुलाब में या गुलाब की? यद्यपि यह हुस्ने-मतला है इसलिए ठीक है.
जहाँ जुदा हुए कभी रुके वहीं सवाल हैं
गुजर गई है जिन्दगी लिखूँ मैं क्या जवाब में.............. बहुत खूब
लिखें जो ताब पर ग़ज़ल सुखनवरों की बात अलग
वगरना लोग देखते हैं आग आफ़ताब में......................वाह वाह बहुत शानदार शेर ..... हासिल-ए-ग़ज़ल ..... (अलिफ़-वस्ल का जबरदस्त प्रयोग)
फ़िज़ूल में ही अब्र ये छुपा रहा है चाँद को
जमाल हुस्न का कभी न छुप सका हिजाब में.............. वाह वाह बहुत खूब .... भले ही कथ्य वही है किन्तु कहन मुग्ध कर रही है.
नजर लगे न मनचलों की गुलसिताँ में सोचकर
सहम सहम निकल रही कली कली नकाब में ........................ वाह वाह
उसूल क्या है जाम का या मयकदों की शाम का
उदास हों या खुश, सदा ही डूबते शराब में...................... सही कहा ..... शेर अपने शाब्दिक अर्थ से विस्तार पाता है तो मानव की प्रकृति विशेष पर तीखा कटाक्ष विचार करने पर मजबूर कर देता है.
इस शानदार ग़ज़ल पर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर
आद० समर भाई जी, ग़ज़ल पर आपकी मुहर लग गई तो आश्वस्त हुई आपका दिल से बहुत बहुत शुक्रिया .
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online