For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इश्क में खुद जाँ लुटाने आ गए (ग़ज़ल 'राज')

हाजिरी वो ज्यों  लगाने आ गए

याद उनको फिर बहाने आ गए

 

मुट्ठियों में वो नमक रखते तो क्या 

जख्म हमको भी छुपाने आ गए

 

चल पड़े थे हम कलम को तोड़कर

लफ्ज़ हमको खुद बुलाने आ गए

 

जेब मेरी हो गई भारी जरा 

दोस्त मेरे आजमाने आ गए

 

रोज लिखना शायरी उनपर नई  

याद हमको वो फ़साने आ गए

 

शमअ इक है लाख परवाने यहाँ 

इश्क में खुद जाँ  लुटाने आ गए  

 

झील में अश्जार के धुलते  बदन

कुछ परिंदे भी नहाने आ गए 

 

देख कर आकाश पर कौस-ए-क़ज़ह  

लोग आँखों से चुराने आ गए  

 

आशनाई उनकी आँखों से कमाल

अश्क मेरे झिलमिलाने आ गए

 

हाथों पैरों में हिना गीली मगर

बज़्म की रौनक बढाने आ गए

------मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 1193

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 2, 2017 at 5:23pm

आद० समर भाई जी सही शब्द क्या है निबाहने या निभाने --थोडा संशय दूर करें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 2, 2017 at 5:18pm

आद० समर भाई जी ग़ज़ल के सर्वप्रथम पाठक के रूप में आपका ह्रदय से स्वागत है आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हो गया | मतले में भाई जी अपनी बात नहीं सामने वाले की बात कर रही हूँ ---ऐसे वो सिर्फ हाजिरी ही लगाने आये हैं उन्हें तो जाने के बहाने फिर याद आ गए 

क्या इसको ऐसे लिख दूँ -----हाजिरी वो तो लगाने आ गए ,याद उनको फिर बहाने आ गए 

कौसो क़ज़ा -शब्द मैंने एक उर्दू लर्निंग पुस्तक से लिया था जिसके लेखक रईस सिद्दकी हैं 

चलो आपने सही बताया किन्तु देखिये ऐसे कितना कन्फ्यूजन हो जाता है इस मिसरे को ठीक कर लूँगी

आपका तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया भाई जी 

Comment by Samar kabeer on April 2, 2017 at 4:39pm
'देख कर आकाश पर कौस-ए-क़ज़ह'
नीचे ग़लत लिख दिया था ।
Comment by Samar kabeer on April 2, 2017 at 4:36pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

मतले के दोनों मिसरे अलग अलग हैं,रब्त नहीं इनमें,यूँ किया जा सकता है :-
"हाज़िरी देखो लगाने आ गए
फ़र्ज़ हम अपना निभाने आ गए"

'देख लटका अर्श से कौसो-क़ज़ा"
इस मिसरे में 'लटका'शब्द मुनासिब नहीं लगता,दूसरी बात,'कौसो-कज़ा' ग़लत है सही शब्द है "कौस-ए-क़ज़ह",तीसरी बात अर्श आठवें आसमान को कहते हैं,और कौस-क़ज़ह"पहले आसमान पर होता है,मिसरा यूँ किया जा सकता है :-
'देख कर आकाश पर कौस-क़ज़ह'
देखियेगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service