बेशर्मी से ... (क्षणिका )
अन्धकार
चीख उठा
स्पर्शों के चरम
गंधहीन हो गए
जब
पवन की थपकी से
इक दिया
बुझते बुझते
बेशर्मी से
जल उठा
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया Arpana Sharma जी सृजन के भावों को अपने स्नेहिल शब्दों से मान देने का हार्दिक आभार।
आदरणीया प्रतिभा जी प्रस्तुति में निहित भावों को अपने आत्मीय सम्मान से अलंकृत करने का हार्दिक आभार।
आदरणीय समर कबीर जी वाली जिज्ञासा मेरे मन में भी थी ,पर आपका जवाब पढ़कर उसके आलोक में जब रचना पढ़ी तो बस वाह ही निकली ...हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी
आदरणीय समर कबीर जी वाली जिज्ञासा मेरे मन में भी थी ,पर आपका जवाब पढ़कर उसके आलोक में जब रचना पढ़ी तो बस वाह ही निकली ...हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी
आदरणीय narendrasinh chauhan जी प्रस्तुति आपकी मन मुदित करती प्रशंसा की तहे दिल से शुक्रगुजार है।
सुन्दर
आदरणीय समर कबीर साहिब अपनी संतुष्टि से सृजन का मान बढ़ाने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय समर कबीर साहिब प्रस्तुति पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया का शुक्रिया। सर इसमें मेरा आशय स्पर्शों के चरम जिन्हें अन्धकार की ज़रूरत थी उस वक्त पवन की थपकी से उसका उस चरम क्षण पे फिर जल कर रोशनी करना एक नटखट सी बेशर्मी है कुछ ऐसा ही आशय था मेरा इस क्षणिका में। आशा है अब आप संतुष्ट होंगे। प्रस्तुति को अपने विचारों से शोभित करने का हार्दिक आभार।
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